इक रात भी ऐसी आई थी...




इक रात भी ऐसी आई थी,

जब चांद ज़मीं पर उतरा था
खिड़की से तुमको घूरते हुए
चांद को हमने पकड़ा था...

तब कान पकड़कर हमने उससे
उठक-बैठक कराई थी
आईंदा ऐसा नहीं करेंगे
उसने क़सम ये खाई थी
ओके बेटा कहकर हमने
चांद को चपत लगाई थी
तेरे रूप पे चांद भी फिसला
इक रात भी ऐसी आई थी...
इक रात भी ऐसी आई थी,

जब चांद ज़मीं पर उतरा था
खिड़की से तुमको घूरते हुए
चांद को हमने पकड़ा था...

तेरे रूप का दीवाना वो
थोड़ा बहका-बहका था
हौले-हौले, चुपके-चुपके
तेरी छत पे दुबक के बैठा था
इक तारा तोड़के अंबर से
तेरे बिस्तर पर फेंका था
पीछे से जाकर हमने उसको
ज़ोर से डांट पिलाई थी..
इक रात भी ऐसी आई थी,

जब चांद ज़मीं पर उतरा था
खिड़की से तुमको घूरते हुए
चांद को हमने पकड़ा था...

- पुनीत भारद्वाज

ज़िंदगी इक दौड़ है...







ज़िंदगी इक दौड़ है...
आगे हिरण है,
पीछे शेर है,
जीने की
और जीने ना देने की
इक मुसलसल होड़ है
ज़िंदगी इक दौड़ है....

शेर भूखा है,
वहशी है,
दरिंदा है;
हिरण को खाना चाहता है
और हिरण तो बस जीना चाहता है

इक शेर है,
इक हिरण है,
इक होड़ है,
ज़िंदगी इक दौड़ है.... -पुनीत बालाजी

बगावत का हर रुख़ अख़्तियार है...



पांव में धूल
आंखों में ख़्वाब
दिल में लगन
सिर पर जुनून सवार है
बगावत का हर रुख़ अख़्तियार है...

लहू तेरा भी लाल है...

ओढ़ी तूने भी खाल है, ओढ़ी मैंने भी खाल है
लहू तेरा भी लाल है, लहू मेरा भी लाल है
कुदरत भेद नहीं करती, ना जन्म से ना जात से
इंसान तो अलग बनता है, बस अपनी सोच और जज़्बात से

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

अपना तो देश चलता है चमत्कारों से


अलग-अलग लोगों सेअलग-अलग विचारों से
अपना तो देश चलता है चमत्कारों से 

वादों सेदावों से और नारों से 
ऊंट करवट बदलता है जनपथ के इशारों से

जनता काजनता के लिएजनता के द्वारा
किसे मतलब है तथाकथित सरोकारों से

हर रोज़ लुटती है इक नई दामिनी
हर रोज़ टपकता है खून इन अख़बारों से

किस मज़हब की जान जली थी दंगों में 
मांगो तो ग़वाही चारदीवारों से 

हमने तो पाई थी आज़ादी सन 47 में
कहां खो गईपूछो तो ज़िम्मेवारों से 

-पुनीत बालाजी भारद्वाज



बहुत फ़ासला है, अब ये फ़ैसला लो...

तुम्हारे खुदा की हम करें आरती

हमारे खुदा की तुम आयते गाओ
बहुत फ़ासला है, अब ये फ़ैसला लो
थोड़ा हम पास आएं, थोड़ा तुम पास आओ
क्यों हैं बिखरे-बिखरे, आओ खुद को समेटें
सरहदें जो दिल में, वो सरहदें मिटाओ
माना मुश्किल भुलाना, वो बीता ज़माना
अब कुछ हम भुलाएं और कुछ तुम भुलाओ
ना अल्हा क़सम लो, ना राम की क़समें
प्रीत की अब नई क़समें तो खाओ

- पुनीत बालाजी भारद्वाज


दंभ भरते थे जो कल अपनी दौलत के गुमान का....

आज शुक्रिया करते हैं वो इक छोटे से एहसान का....


कल मैं था उसकी जगह, आज वो मेरी जगह

कब पलटे तक़दीर....क्या भरोसा इंसान का...


अजी ये तो बस इस जहां की बात है....

कब रहता है एक जैसा मूड भी भगवान का...
                                                                              - पुनीत बालाजी भारद्वाज

'SAVE ME', 'SAVE MAA'


सदियों से जो बोझ सहती रही हमारा, आओ हम भी बनें इसका सहारा...

इसको मां कहते हम
जिस धरती पर रहते हम

पेड़-पौधे...जिसका श्रृंगार
आज उस पर होता अत्याचार

ना कुचलो मां के आंचल को
ना काटो घने इस जंगल को

इस दर्द का बोझ सहती है मां
'मुझे बचाओ...', कहती मां

धरती मां की लाज बचाओ
धरती मां को आज बचाओ


- पुनीत बालाजी भारद्वाज

राजधानी की कहानी



कभी इंद्रप्रस्थ, कभी सल्तनत, कभी शाहजहानाबाद
महाभारत से आज भारत तक
ये है हर दिल में आबाद

सदियों पुरानी दिल्ली की कहानी
हुई 100 साल की अपनी राजधानी

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

कोई है बस तुम्हारा.....(सुनिए भी)




कोई है जो याद करता है तुम्हें
कोई है जो सांस लेता है सिर्फ़ तुम्हारे लिए

दिल हमारा भी मचलता है तुम्हारे बिना
इक-इक पल सदियों सा कटता है हमारा तुम्हारे बिना

हर इक आहट पर हम भी चौंक जाते हैं
भीड़ से बाज़ार से अब हम भी जी चुराते हैं
रत-जगे हम भी तेरी याद में मनाते हैं
तुम्हें भूल पाने की क़समें हम भी रात-दिन खाते हैं

मगर तुम्हें हम भूल पाएं तो भूल पाएं कैसे
और आरज़ू क्या है ये भी जताएं कैसे
ये दिल ही है जिसने ये दिन दिखाया है
लबों पे ख़ामोशी भीतर इक तूफ़ान सा जगाया है

भीतर इक तूफ़ान सा जगाया....




-पुनीत बालाजी भारद्वाज

जीया भी गावै मेघ मल्हार



मोर म्चावै बागां मै शोर
गरजे-बरसे बदरा घणघोर....

धरा की देह पर रंग हैं झलके
पहन लहरिया...जोबण छलके...

छम-छम...छमके.... बरखा बहार
जीया भी गावै मेघ मल्हार.....

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

अब तो सावन ऐसा आए..
















सावन की पहली बूंदों में
दिल्ली सारी धुल गई है
बस दिलों में मैल बाकी है
कम्बख़्त बारिश ये क्यों भूल गई है



















अब तो सावन ऐसा आए
जो दिलों की गर्द को धोके जाए

हर शाख़-शग़ूफ़ा यूं खिल जाए
के रोता चेहरा भी मुस्काए...




























अब तो सावन ऐसा आए
के रंज दिलों में रह न पाए

हर सूखा दरिया फिर भर जाए
और कोई न प्यासा कहलाए

अब तो सावन ऐसा आए......

मन तरसे जो बरखा बरसे ...













मन तरसे जो बरखा बरसे,
मोरे पिया अब निकलो घर से.....

















दिल तन्हा-तन्हा रूठ रहा है,
धीमे-धीमे टूट रहा है..
जाने क्या पीछे छूट रहा है,
छूना ना, बस एक झलक दे
असर आएगा तेरी नज़र से..
मोरे पिया अब निकलो घर से.......
















बूंद-बूंद पर चलके आना
या बूंद-बूंद में ढलके आना
आकर मेरी प्यास बुझाना
अब आ भी जा ओ बरखा रानी
उतर भी आओ ना अंबर से...
मोरे पिया अब निकलो घर से........
- पुनीत भारद्वाज


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Love at First Sight...















Love at first sight
Is it wrong, Is is right?
Will it be painful or delight?
love at first sight....

Whether to say yes,
Whether to say no...
Whether to follow him,
Whether to let her go...
Lots of ups...
Lots of Down..
Much to lose..
Much to find...
Will it be painful or delight?
love at first sight....

If i cry,
u will hold me na...
If i wanna fly,
u will hold me na..

Be my love, Be my part
Always close to my heart
Just Hold me tight

Love at first sight.....

- Puneet Balaji Bhardwaj

हिन्दुस्तान वहां भी है, पाकिस्तान यहां भी है...





एक हिन्दुस्तान वहां भी है, इक पाकिस्तान यहां भी है...
कुछ इंसान वहां भी हैं, कुछ हैवान यहां भी हैं....

आरती-अज़ान के फेर में फंसा
बेबस भगवान वहां भी है, बेबस भगवान यहां भी है..

कुछ चेहरे हैं भोले-भोले, कुछ चेहरे जैसे बम के गोले
दहशत का सामान वहां भी है, दहशत का सामान यहां भी है...

तकसीम हुए दिल, बिछा दी सरहद
अपनी हीं ज़द में बना दी इक हद
कुछ नादान वहां भी है, कुछ नादान यहां भी है.....

बीच में बॉर्डर और दोनों ओर
एक जैसे इंसान वहां भी हैं, एक जैसे इंसान यहां भी हैं.....

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

कुछ बच्चों को आपस में लड़ते देखा है....
















आंखों में ख़्वाबों को जलते देखा है...
सुबह-सुबह सूरज को ढलते देखा है...

आग लगी दरिया में ऐसे
अश्क़ बने अंगारों जैसे
सब अरमानों को राख में तरते देखा है....

चांद-सा चेहरा, रात सी ज़ुल्फ़ें
रोशन समां, रेशम सी हवा....
और....बीच सड़क पर...
रोटी की ख़ातिर,
कुछ बच्चों को आपस में लड़ते देखा है....

-पुनीत बालाजी भारद्वाज