ज़िंदगी इक अजब तमाशा है
कभी नीम सी कड़वी
कभी मीठा बताशा है.......
कभी ज़ालिम है, ज़हर है, क़हर है ज़िंदगी
तो कभी इक सुनहरी सहर है ज़िंदगी
होंठों पे दबी हंसी सी है
पलकों में छिपी नमी सी है....
ज़िंदगी कहो तो एक दुआ-सलाम भी है
हिंदु की राम-राम, मियां का असलाम भी है
और कहते हैं ज़िंदगी जीने का नाम भी है
मगर ज़िंदगी वो इक नाम भी है
जिसके संग ज़िंदगी गुज़ार सकें
वो शख़्स भी आपकी ज़िंदगी ही है
कभी नीम सी कड़वी
कभी मीठा बताशा है.......
कभी ज़ालिम है, ज़हर है, क़हर है ज़िंदगी
तो कभी इक सुनहरी सहर है ज़िंदगी
होंठों पे दबी हंसी सी है
पलकों में छिपी नमी सी है....
ज़िंदगी कहो तो एक दुआ-सलाम भी है
हिंदु की राम-राम, मियां का असलाम भी है
और कहते हैं ज़िंदगी जीने का नाम भी है
मगर ज़िंदगी वो इक नाम भी है
जिसके संग ज़िंदगी गुज़ार सकें
वो शख़्स भी आपकी ज़िंदगी ही है
जो आपकी ज़िंदगी संवार सके...
- पुनीत भारद्वाज
3 टिप्पणियां:
kitni khoobsurti se zindagi tamam utar chadhaav bayaan karti hai apki kavita.
har pehloo ko bakhoobi chhuaa h apne.
Last lines r mind-blowing.
gr8 poem. Zyada taarif karna nahi aata, par bahut achhi h.
b'ful poem describing d most b'ful gift of God..... Life....
the accompanying picture is..... sorry can't find words..
nice choice....
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