ये दिल्ली है ये मेरी रगों में दौड़ता है
जितना आगे बढ़ो उतना पीछे छोड़ता है.....
इस शहर में अब दिल कहां बसते हैं
बस चेहरों की एक भीड़ है
और भीड़ में जिस्म रिसते हैं
दिलवालों का ये शहर अब दिलों को तोड़ता है
ये दिल्ली है ये मेरी रगों में दौड़ता है
जितना आगे बढ़ो उतना पीछे छोड़ता है.......
दिलवालों का ये शहर अब दिलों को तोड़ता है
ये दिल्ली है ये मेरी रगों में दौड़ता है
जितना आगे बढ़ो उतना पीछे छोड़ता है.......
कई ख़्वाब संजोए थे इन आंखों ने
मगर इस शहर के मंज़र ने वो सब ख़्वाब छीन लिए
बंजर इन आंखों ने टूटे ख़्वाबों के ढेर से
आधे-अधूरे से ख़्वाब फिर से बीन लिए
पहले ख़्वाब दिखाता है, फिर ख़्वाबों को रौंदता है
ये दिल्ली है ये मेरी रगों में दौड़ता है
जितना आगे बढ़ो उतना पीछे छोड़ता है...
इक आंचल था जिसे छोड़कर मैं इस शहर की गोद में आया था
किसी के गले से लिपटने के बाद
मैंने इस शहर को गले से लगाया था
मगर जिसे अपना समझा, वो तो धोखा दे गया
अपनो से दूर कर ये शहर एक झूठा सपना दे गया
इक मां-बेटे के रिश्ते को तोड़ता है....
ये दिल्ली है ये मेरी रगों में दौड़ता है
जितना आगे बढ़ो उतना पीछे छोड़ता है
जितना आगे बढ़ो उतना पीछे छोड़ता है
- पुनीत भारद्वाज
4 टिप्पणियां:
घर से दूर परदेस में रहने की चाहत में हमने अपने घर की ड्यौढ़ी तो पार कर ली, सोचा था जब गांव वापिस जायेंगे तो लोग हमें खिड़कियों से झांक कर देखेंगे... लेकिन सच तो ये है कि घर जाकर अपनी खिड़की से बाहर देखने का मन भी नहीं करता... सोचते हैं कि ये चार दिन घर की चार दीवारी में रची बसी दुनियां देखने में ही गुजार दें... घर जाकर लोगों को नखरा दिखाने का तो खयाल भी नहीं आता... परदेस की इन ऊंची ऊंची इमारतों ने हमारा कद इतना छोटा कर दिया है कि हम खुद नही देख पाते कि हमने अपनी जबानी के कितने सावन बस फलानी जगह का पता जानने में ही गुजार दिये... ये शहर न तो प्यार से अपनाता है और न ही अपनों के पास जाने की इजाज़त देता है... अपनों से दूर होके हमें क्या मिला है ये एक परदेसी ही बयां कर सकता है...
जैसे तुम अच्छे हो, वैसी तुम्हारी poems भी अच्छी होती है...
hi puneet
nice poem yaar.
waiting 2 read some good poem on friendship hope u dont had bad experience in this relation like delhi.
ye to har bade shehar ki kahani h, lekin kai ummido, kai sapno ne is shehar me agar aankhen kholi h, to unme se kaafi manzil tak b pahunche h.
MAA-BETE wala stanza bahut marm-sparshi tha.
A nice poem depicting the pitfalls of life in a big city.
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