ये तारे सच्चे लगते हैं...




सूरज दिनभर जलता है

रात में चंदा चलता है

साथ में तारे जगते हैं

जग-मग, जग-मग करके ये

कोई इशारा करते हैं

देखो वो तारा टूट गया

वो आसमान से रूठ गया

चुपचाप ही सबकुछ सहते हैं

फिर भी ये ख़ुश रहते हैं

रात में ड्यूटी करते हैं

और दिनभर सोते रहते हैं

पर टाईम से ये उठ जाते हैं

हर रोज़ नहाकर आते हैं

ना ये छुट्टी लेते हैं

और ना ये बंक लगाते हैं.........




- पुनीत भारद्वाज



1 टिप्पणी:

Puneet Bhardwaj ने कहा…
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