गुलामी

आज फिर कुछ ख्याल फेंके हैं शाह ने
दौड़ पड़े हैं सारे गुलाम,
हाथ में कुछ कल-पुर्जे लिए
हर कोई फुर्सत से बीन रहा अपने
हिस्से के ख्याल को....
अपने हाथों से तराशकर ये देंगे
ख्याल को एक नई शक्ल....
कोई मीनार बनाएगा,कोई जहाज़ तो कोई ताजमहल...
और ईनाम में पाएगा दो कटे हाथ...
लेकिन कोई तो होगा जो ख्याली पुलाव बनाकर
खुद की आज़ादी का ख्वाब बुनेगा....



तुषार उप्रेती

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

bahut pyari poem h Tushar
As usual bahut time laga samajhne me.
pata nahi shayad tum jab bataoge to
aur gehri lagegi.