ख़्वाहिशों को पंख लगाऊं
मैं यूं उड़ जाऊं
अंबर की सारी हवा बटोर के लाऊं....
छू लूं छोर गगन का
खोलूं चोर मन का
बादलों की सड़क पे ऐसे दोनों हाथ फैलाऊं
अंबर की सारी हवा बटोर के लाऊं....
एक हाथ में सूरज थामू
एक हाथ में चंदा मामू
आंखों से थामू मैं तारें
झिलमिलाएं मेरे सपने सारे
कोई तारा टूटे मैं जग जाऊं
अंबर की सारी हवा बटोर के लाऊं...
- पुनीत बालाजी भारद्वाज
4 टिप्पणियां:
very imaginative,
sab aapa-dhapi se chhuda kar, fir se bachpan me le gayi jab hum aise sapno me jiya karte the.
par taara tootna mujhe achha ni laga
khair kavi ki kalpana, sapne me bhi zindagi ki haqikat se jude rehne ki....
ये तो बड़ी प्यारी सी ख्वाहिश है और ऐसी ख्वाहिशें बनी रहनी चाहिए बेशक नींद टूटने तक ....
shukriya mam.......
ye khawab ab koi na tod paye... ab koi bhi iss neend se na jagaye.... Gud work...Mr. Shayar....
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