आगे लगे और धुंआ उठे.....


आग लगे तो इस तरह लगे
के निग़ाहें मिले और धुंआ उठे


सांसों से सांसे छू जाए
बातों ही बातों में तूफ़ान चले

आग लगे तो इस तरह लगे.....


मेरी धड़कनें तेरी धड़कनों से टकराए
मेरी धड़कनें तेरी धड़कनें बन जाएँ
जज़्बातों का सिलसिला कुछ इस तरह चले
के निग़ाहें मिले और धुंआ उठे....


मेरी बातों में इतना असर हो
ना तुझे दिन में चैन मिले,
ना रात में बसर हो
लफ़्ज़ होंटों से गिरे और कोई जादू करे
आगे लगे तो इस तरह लगे
के निग़ाहें मिले और धुंआ उठे....


वो पल के जिसमें जन्नत नसीब होती है
रूह जिस्मों से निकलकर ख़ुदा के क़रीब होती है
आओ उस एक पल को आबाद करें


आग लगे तो इस तरह लगे
के निग़ाहें मिले और धुंआ उठे......



- पुनीत भारद्वाज




3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

nice song, wonderful words, equally good imagination....
keep it up.

डॉ .अनुराग ने कहा…

सुभान अल्लाह...क्या कहा है दोस्त..आग लगे तो इस तरह से लगे

Gunjan ने कहा…

Aag lage to sach me issi tarah hi lage....