बिन धागे की कठपुतली हम
दौड़े-भागे, नाचे-गावे....
ऊपर बैठा सबदा रब राखा
डमरू बजावे, खेल दिखावे....
मजमा लगा है, मंच सजा है...
उसने क़रतब में हर रंग रचा है....
कभी उछलता, कभी फुदकता
कभी सोचता, कभी भटकता
कभी है रोता, कभी मटकता
कभी झगड़ता, कभी झिड़कता
इक आवे तो दूजा जावे...
आवे-जावे, जावे-आवे........
ऊपर बैठा सबदा रब राखा
डमरू बजावे, खेल दिखावे.....
- पुनीत भारद्वाज
1 टिप्पणी:
hum sab rangmunch ki katputliyan hain babumoshai, jiski dor upar vale ke hath me hai
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