इतिहास ओढ़ते हो, इतिहास बोलते हो...
गढ़े-मुर्दे उखाड़ते हो, किताबों-इबारतों से
सिर्फ़ तारीख़ें खंगालते हो...
जो बीत चुका है उसे
अब बीत भी जाने दो,
मुझे आज में आने दो ...
जानिबे-मंज़िल एक क़दम तो बढ़ाने दो...
इतिहास से मत डराओ मुझे इतिहास बनाने दो....
-पुनीत भारद्वाज
(पाश से प्रेरित कविता)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें