इक पगली लड़की के बिन*
कैसे काटूं अपने दिन
लंबी हो गई सारी रातें
बोलो कैसे इनको काटें
करते हैं कभी ख़ुद से बातें
और कभी तारें गिन-गिन..
इक पगली लड़की के बिन
कैसे काटूं अपने दिन....
सूरज-चंदा आएं-जाएं
तकते हैं सब तेरी राहें
इस उम्मीद में के तू आ जाए
बोलो भला हम क्या बतलाएं
पूछे जो मेरे पलछिन........
इक पगली लड़की के बिन
कैसे काटूं अपने दिन....
- पुनीत भारद्वाज
*ये लाइन कुमार विश्वास की कविता की एक लाइन से प्रेरित है
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