ज़िंदगी...

इक दरार सी पड़ गई है फ़लक़ में कहीं
और चांद भी ठहर गया है वहीं का वहीं
ज़िंदगी में अब दूर तलक़ रात ही रात होगी
ग़र होगी कोई बात

तो मद्धम पड़ चुके चांद की बात होगी.....


- पुनीत भारद्वाज

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