धुआं उठा तो आग भी होगी,पर ये वक्त से पहले क्यों और कैसे बुझ गई थोड़ा खोपड़ी खुझाते हुए सोचें तो समझ आयेगा।
मुनाफा, मार्केटिंग और मनोरंजन(निश्चित तौर पर यहां हम एक खास तबके के मनोरंजन की बात कर रहे हैं) में हमेशा अव्वल रहने वाले रामू कैंप पर इस बार लोगों ने कैंची चला दी है। ‘शोले’ ‘आग’ पकड़े उससे पहले ही रामू के अरमानों पर किसी ने मानो पानी डाल दिया हो..पहले दिन ही रामगोपाल वर्मा की आग सिर्फ 50 प्रतिशत का बिज़नेस करते हुए हांफने लगी है। ये एक देसी बनारसी पहलवान की तरह चारों खाने चित्त हो गई है। जो लंगोट बांध कर तो अखाड़े में पूरे दम-खम से उतरता है लेकिन उसका लंगोट जल्द ही उतार लिया जाता है।
-तुषार उप्रेती
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