एक बारीख सी सांस ने अभी अभी
पिया है गर्म सा गुस्सा
नथूनों में एक जलन सी हो रही है
ये सांस भीतर ही भीतर
फुफकार रही है..
चीभ पर गालियों से छाले पड़े हैं
अंदर ही अंदर मैं अपने ज़हर से मर रहा हूं
धड़कनें अब पूछ कर धड़क रही हैं
दिमाग में बसी यादों से खून रिस रहा है
शरीर पर जख्मों से बना एक मिनार तैयार है
एक बारीक सी सांस ने अभी अभी
पिया है गर्म सा गुस्सा....
तुषार उप्रेती
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