कुछ ऐब


जीने के लिए एक ऐब पालना चाहिए
कुछ सवालों को सवालों से संभालना चाहिए

कहां-कहां ढूंढेंगे जवाबों को
कुछ वक्त अपने लिए भी निकालना चाहिए

उम्र के हर फासले पर फैसला न करो
कभी कुछ सिक्कों को यूं ही उछालना चाहिए

ऐब न हो तो हौंसला न हारें
कुछ हसीन किस्सों को फिर से खंगालना चाहिए

कभी न कभी तो बदलेगी ये सूखी फिजां
मिट्टी के घरौंदों पर एक छप्पर तो डालना चाहिए..


तुषार उप्रेती

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

what Tushar sleeping in Mumbai ya waha ja kar bas bhaag-daud hi karte rehte ho
I mean apna hi blog kholne ka time nahi milta????

IT'S BEEN SO LONG SINCE U POSTED A POEM !!!!

Extract 4m ur poem for U:-
" kuch waqt apne liye bhi nikalna chahiye"

ya shayad waha ja k pasand aur priorities bhi badal gayi h?!