चाहतें तमाम हैं...



















चाहतें तमाम हैं, कभी सब्र तो हो...
ये कौन सा मुक़ाम है, कोई ख़बर तो हो..

यूं तो रोज़ उठते हैं ये हाथ मगर....
बस दुआ देना इनका काम है, कभी असर तो हो..

मुद्दतों रहे हैं इंसानों के बीच.....
यहां कौन इंसान है, कोई ज़िक्र तो हो..

- पुनीत भारद्वाज

2 टिप्‍पणियां:

Dushyant ने कहा…

bahut badhiya....

बेनामी ने कहा…

चाहतें तमाम हैं, कभी सब्र तो हो...
exactly...., very true
aur jaha tak duwao ki baat hai, wo zaroor asar laati hain.