धर्म-धागे बांधे रे बंधु
दिल का धागा बांध रे
गा ले प्रेम राग रे.....
हर सुबह तू जागे रे बंधु
अब तो सचमुच जाग रे
ख़ुद से ना तू भाग रे.....
पोथी-पत्रा बांचे रे बंधु
थोड़ा भीतर झांक रे
छत पे बोले काग रे......
काबा-कलिसा जावे रे बंधु
रब तो तोरे पास रे
करले पूरी प्यास रे.......
तेज़ सबसे भागे रे बंधु
चल तू सबके साथ रे
थामके हाथ रे
धर्म-धागे बांधे रे बंधु
दिल का धागा बांध रे
गा ले प्रेम राग रे.....
"है ख़ुदा तो है मज़हबमज़हब से ही मंदिर-मस्जिदमंदिर-मस्जिद में होते झगड़ेझगड़े भी तगड़े-तगड़े...इक ख़ुदा के फेर में क्यूं खुद है रोताना होता ख़ुदा तो तू ख़ुदा होता....."
- पुनीत भारद्वाज
(मिर्ज़ा ग़ालिब के क़लाम से प्रेरित)
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