चिलमन और लफ़्ज़
चिलमन के उस शहर में
नकाबपोशों का शोर था
ख़ुदा की ख़ुदाई में
हर कोई मेरी ओर था
आवाज़ें छन के मेरे पास
आ रही थी ,
तुम कुछ लफ़्ज मन ही मन
गुनगुना रही थी ,
तभी दूर से एक आवाज़ आई
मानो किसी ने आज़ान सुनाई
तुमने मेरा नाम पुकारा
दूध में भिगोकर एक लफ्ज़ मारा
मेरे होठों का रंग अब सुरमई लाल है
ये तो महज़ तुम्हारे लफ्ज़ का ख्याल है
ये लफ़्ज ही थे जो
बेवफाई कर गये
तुम्हारी सांसों को छूने से पहले
तुम्हारे होठों से झर गये
तब से चिलमनों ने अफवाह उड़ाई है
चांदनी अब साजिशों पर उतर आई है
अब कोई मेरा साथ नहीं देता
ख़ुदा भी चुप रहने को कहता
अब आज़ानें सुनाई नहीं देती
आवाज़ें अब कोने में बैठी सिसकती रहती ....
तुषार उप्रेती
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1 टिप्पणी:
Wah wah!! aisa mere friends ne kaha ise padh k jo mere paas baithe the. Really it's a nice one.
feels good 2 imagine- chilman se lafz chhan k aa rahe the.
the accompanying photo is verrrry b'ful.
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