कुछ ख्वाबों को समेट कर
कुछ किस्सों को लपेट कर
चाय की चुस्कियों में गुजरती है अपनी शाम,
इसलिए सारे शहर में हम हैं बदनाम....
कुछ ऊंगलियों को थाम कर
अपने अधूरे काम कर
चाय का हर घूंट अपन पीते हैं
खाली जेबों से यूं ही मौज लेते हैं
कुछ बातों को संभालकर
कुछ वक्त निकाल कर
चाय से चुप्पियां भगाया करते हैं
हम यूं ही आंसू सुखाया करते हैं
कुछ धुओं को फूंक कर
थोड़ी देर को रुक कर
चाय की हर चुस्की का मज़ा लेते हैं
अपने होठों को गर्मी की सजा देते हैं..
कुछ जख्मों को साथ लिये
कुछ पट्टियों को बांध लिये
चाय से गप लड़ाते हैं
बैठक अपनी रोज़ यूं ही जमाते हैं.......
तुषार उप्रेती
कुछ किस्सों को लपेट कर
चाय की चुस्कियों में गुजरती है अपनी शाम,
इसलिए सारे शहर में हम हैं बदनाम....
कुछ ऊंगलियों को थाम कर
अपने अधूरे काम कर
चाय का हर घूंट अपन पीते हैं
खाली जेबों से यूं ही मौज लेते हैं
कुछ बातों को संभालकर
कुछ वक्त निकाल कर
चाय से चुप्पियां भगाया करते हैं
हम यूं ही आंसू सुखाया करते हैं
कुछ धुओं को फूंक कर
थोड़ी देर को रुक कर
चाय की हर चुस्की का मज़ा लेते हैं
अपने होठों को गर्मी की सजा देते हैं..
कुछ जख्मों को साथ लिये
कुछ पट्टियों को बांध लिये
चाय से गप लड़ाते हैं
बैठक अपनी रोज़ यूं ही जमाते हैं.......
तुषार उप्रेती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें