मौत....








कुछ ख़लिशें(उलझनें) पाल रहा हूं

मैं उसका आना टाल रहा हूं


यूं तो पहले भी जख़्म खाये थे

अब उनके निशान संभाल रहा हूं


आंखे अब बुझने ही वाली हैं

अहसासों को मन से निकाल रहा हूं


सरे-शाम अब दर्द से कटती है

मैं उसके लिए खुद को पाल रहा हूं


वो दिख रहा है मुझे आता हुआ

लो खलाओं( अंतरिक्ष ) की ओर हाथ उछाल रहा हूं



तुषार उप्रेती

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