ज़रा गौर कीजिए हुज़ूर
उन चोर निगाहों की ओर
जब मिट्टी का चूल्हा फूंकती
माई के पीछे बेसुध हो खेल रहे बच्चे
एकाएक निहार लेते हैं चूल्हे को.....
एकाएक निहार लेते हैं चूल्हे को.....
कुछ अनजान बनने का ढ़ोंग करते हुए
चूल्हे की हकीकत से...
उनके कान इंतज़ार में रहते हैं
उस पुकार के,जो मिटा जायेगी
चूल्हे की हकीकत से...
उनके कान इंतज़ार में रहते हैं
उस पुकार के,जो मिटा जायेगी
दिन-भर से फूलते उनके उस नन्हे
पेट की भूख को....
पेट की भूख को....
ज़रा गौर कीजिए
जब अपना पप्पू खुशी से उछलता है
फिर चोर निगाहों से निहार लेता है
अपने बाप को....
फिर चोर निगाहों से निहार लेता है
अपने बाप को....
इस बात से अनजान बनने का
ढ़ोंग करते हुए कि आज पहली ताऱीख है
वह भी इंतज़ार में खड़ा होता है
उस एक पुकार के जो महीने-भर से फटी
उसकी नेकर को सिलने का आश्वासन देती है........
लेकिन मैं जानता हूं..
आप गौर नहीं करेंगे इन सब पर..
और उन्हीं चोर निगाहों से देखने लगेंगे
अपने उस मन को..
अपने उस मन को..
इस बात से अनजान बनने का ढ़ोंग करते हुए ,
क्या आप ये सब पहले से नहीं जानते थे ?
आखिरकार आप भी खड़े हो जाएंगें
उस एक पुकार के इंतज़ार में
जो आपके इस मरते मन को सांत्वना देंगे..
उस एक पुकार के इंतज़ार में
जो आपके इस मरते मन को सांत्वना देंगे..
लेकिन ज़रा गौर तो कीजिए हुज़ूर ।
तुषार उप्रेती
1 टिप्पणी:
VOW yaar it's marvellous!!!!
ekdum sahi or real. aisa hi to karte h hum log.
bahut imaandari se tumne haqeeqat ko pesh kiya h.
gr8 effort.
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