मेरी प्रेरणा....


धीमे-धीमे से आती हो मेरे सीने में तुम
आकर दिल के भंवर में हिंडोले खाती हो तुम
मेरी प्रेरणा हो तुम
मेरी प्रेरणा हो तुम....

मैं नाज़रीन* हूं तुम्हारा
सुरम्य मेला हो तुम
वो बाग जहां शोख़-सब्ज़
कलियां खिलती हो
उस बाग की बागबां हो तुम..
* देखने वाला

मेरी प्रेरणा हो तुम
मेरी प्रेरणा हो तुम..

दीपावली की दीपमाला हो तुम
वो आतिश नज़ारा-ए-हरसू* हो तुम
रंगों में घुली मनहर होली हो तुम
सर्दी में तपती लोहड़ी हो तुम
* चारों ओर की आतिशबाज़ी

मेरी प्रेरणा हो तुम
मेरी प्रेरणा हो तुम..

हर दर्द में जो सुकून दे
वो मरमरी एहसास हो तुम
जिसकी मुझे दिली चाहत है
हां.. ऐसी ख़ास हो तुम

वो सौंधी सी महक
जो मेरा ही अंश है
वो शोशा*, वो महकती कस्तूरी हो तुम
* कोई विलक्षण बात

मेरी प्रेरणा हो तुम
मेरी प्रेरणा हो तुम...

मेरी भाषा, मेरा अलंकार
मेरा पर्याय, मेरा तख़ल्लुस*
मेरे ह्रदय का स्पंदन हो तुम
* कवियों का उपनाम जैसे असहदुल्लाह ख़ान का तख़ल्लुस 'ग़ालिब' था

मेरी प्रेरणा हो तुम
मेरी प्रेरणा हो तुम..

जिस प्रेरणा से पिरो सकूं
मैं कविताओं सरीखे मोती
मेरा कोई तस्सव्वुर
मेरा हर ख़्याल हो तुम
ऐसी प्रेरणा हो तुम
मेरी प्रेरणा हो तुम...


-पुनीत भारद्वाज

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

kya comment karu is par shabd hi nahi milte. itni khoobsoorat prerna, itna pyara uska ehsaas, or in sabse khoobsoorat kavita....

बेनामी ने कहा…

prerna shabd ko naya matlab, naye aayam pradan karti, pyaar ko nayi prernaye deti kitni pyaari rachna...