क्या कहूं...

ख़ुशबू कहूं,
आफ़ताब कहूं,
या उजले कोसे में लिपटा ग़ुलाब कहूं......


कोई दुआ कहूं,
या नमाज़ कहूं,
या मंदिरों में गूंजती ख़ुदा की आवाज़ कहूं......


इक मुक़्क़म्मल ख़्याल कहूं,
या फिर कोई अधूरा सवाल कहूं,
या अरमानों से भी उंचा परवाज़* कहूं.....
* उड़ान


शोख़ अदा कहूं,
या मस्त अंदाज़ कहूं,
या फिर वक़्त से बेअसर कोई रिवाज़ कहूं....




तुम ही
बताओ मैं तुम्हें क्या कहूं...


-पुनीत भारद्वाज

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

kuch naam do na do, jaise marzi pukara karo;
bas yad kiya karo or hame yaad aaya karo....
tumhari pyari si poem ka chhota sa jawab.

बेनामी ने कहा…

kuch naam do na do, jaise marzi pukara karo;
bas yad kiya karo or hame yaad aaya karo....
tumhari pyari si poem ka chhota sa jawab.