इक खोया-सा सुक़ून देती है
कोई दादी-नानी की कहानी लगती है
ये रात कितनी सुहानी लगती है..
आती है चली जाती है इक इंतज़ार में
कोई बावरी दीवानी लगती है
ये रात कितनी सुहानी लगती है...
चांद सितारों की जगमगाहटें
सच्चे शायर की ज़ुबानी लगती है
पल-दो-पल में ही ढ़ल जाती है
मुझको मेरी पेशानी लगती है
क़ैद करना चाहता हूं इसको
ये मुझको मेरी नादानी लगती है
ये रात कितनी सुहानी लगती है
दिन में तो हर शै बेमानी लगती है
-पुनीत भारद्वाज
1 टिप्पणी:
khoobsoorat manzar, khoobsoorat baatein, khoobsoorat raatein....
how beautifully u've defined an equally beautiful njght.
it feels gud 2 imagine....
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