कुछ किस्से ऐसे होते हैं आपकी ज़िंदगी में.. जो लगता है पूरी दुनिया में सिर्फ आपके साथ ही हुए हों... एक ऐसा किस्सा मेरी 22 बरस की ज़िंदगी में मेरे साथ भी हुआ। लेकिन किस्सागोई के इस कॉलम में मैं वो क़िस्सा अपने ही अंदाज़ में बताना चाहूंगा।
जाने इस रिश्ते को क्या नाम देते हैं
यार मुझको सभी पागल कहते हैं..."
मगर ये सिलसिला कुछ रोज़ पहले ही टूट गया...उसकी बीमारी तो ठीक थी लेकिन उसकी अचानक मुझसे मिलने की बेकरारी मुझे अजब लगी। क्योंकि उसने वो कहा जिसकी गुज़ारिश इससे पहले हमारे रिश्ते में नहीं हुई थी। मेरी और उसकी तरफ से इससे पहले कभी मिलने की कोशिश नहीं की गई। मन तो तब भी नहीं था मिलने का..लेकिन जो दोस्त मुझे पागल कहते थे..उनके लाख कहने पर मुझे उस अजनबी मगर जाने-पहचाने दोस्त से और ज़्यादा जान-पहचान बढ़ाने हॉस्पिटल जाना ही पड़ा। हम तीन दोस्त बाईक से निकल दिए..और मुझे थोड़ा डर, थोडी खुशी हो रही थी और साथ ही इस बात को लेकर काफी हद तक सुकून था कि कुछ लम्हों के बाद मैं अपने दोस्तों के सामने सीना चौड़ा करके खड़ा होने वाला था। आखिर जिस शख़्स के लिए मेरे दोस्त मेरा मज़ाक उड़ाते थे.. मैं उसी शख़्स से मिलने वाला था। सफ़र ज्यादा लंबा नहीं था... लेकिन सफ़र लंबा लगने लगा। क्योंकि एक लंबा सिलसिला जो टूटने वाला था। इस बीच कई बार मुझे लगा कि आखिर ये सब जो मैं कर रहा हूं.. क्या वाकई ठीक है (तौल-मौल की आदत है..आखिर आम-इंसान जो ठहरा) तब एकबारगी मन तो करा कि वापिस लौट जाउं। मगर वही किस्मत, भाग्य, नियती, DESTINY वगैरह-वगैरह।
आखिरकार इतने कशमकश भरे सफ़र के बाद बाईक वहीं रूकी जो उसकी DESTINY थी...जहां उसे रूकना चाहिए था.. वो हॉस्पिटल जहां मेरी बीमार दोस्त मेरा इंतज़ार कर रही थी। बाईक गुडगांव के उसी हॉस्पिटल के आगे रूकी। रात के 10 बजे थे। सबकुछ बिल्कुल नया था मेरे लिए..इसलिए थोड़ी उलझनें भी थी मन में। और इस बीच उस कम्बख़्त कशमकश का क्या करें जो पूरे सफ़र में मेरी बाईक की पिछली सीट पर बैठी मेरे साथ चल रही थी.. फिर हावी होती गई मुझ पर । जैसे-जैसे मैं उस अंजान चेहरे के नज़दीक जा रहा था..बढ़ती जा रही थी उलझनें। और तब हद ये हो गई कि बीमार दोस्त के रूम के आगे कई बार जाकर वापिस लौटना पड़ा...क्या कहूं लाज केवल लड़कियों का ही सामान नहीं है। और फिर शर्म के मारे दोस्तों के सामने सीना चौड़ा करना तो दूर उनकी फब्तियां सुननी पड़ी। मन ही मन बैचेन दिल ने हौसला बढ़ाने के लिए दुष्यंत कुमार की कुछ पंक्तियां गुनगुना ली। लो अब तो वो होना ही था जो मैं करने आया था। सब बंदिशें हटाकर दरवाज़ा खोला और सीधा दीदार हुआ उस चेहरे का। चेहरा आम था लेकिन मुझे खुशी बेहद थी। इतनी खुशी थी के दिल में दबानी पड़ी और पूरा माजरा तब शायद मेरी नज़रें ही बयान कर रही थी।
आखिर इक साल से भी लंबा सिलसिला जो ठहर गया था। वो चेहरा जिसकी आवाज़ में कोई जादू था और वो जादू भरी आवाज़ जो बेशक्ल थी अब तक... हां उसका चेहरा मुझे जो मिल गया था। उन लम्हों ने एक सिलसिला तो खत्म कर दिया मगर उन लम्हों की मेहरबानी रही कि एक सिलसिला और शुरू हो गया है...जो पता नहीं कब खत्म हो। शायद हो... या शायद कभी भी ना हो...-पुनीत भारद्वाज
3 टिप्पणियां:
mubarak ho!!!!
to ab seena chauda hua ya nahi,kya ab bhi koi chidata hai?
kya kisi k chidane bhar se tum dosti todne chale the?
at last u managed to shed ur apprehensions n went to met her, gr8!!!
congratulations 2 d girl also.
might b d reason she wanted u 2 meet her parents so that she cud feel relieved dat now her parents also know of her unseen(till then) friend.
bravo 2 u, tumhare frnds itna chidate the phir b tumne uske sath dosti nibhaii, she is vry lucky n privileged 2 hv u as frnd.
cheers 2 ur friendship!!!!
All d Best!!
Nice article buddy!!
how true r ur feelings, gr8 friendship i must say!!
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