करते रहिए हाय हाय….


ये हाय ,हाय का ही खेल है दोस्तों। अगर किसी से हाय बंद हो गई तो समझिए आपकी किस्मत का ताला भी बंद हो गया। अगर किसी ने हाय दे दी तो समझिए जिंदगीभर मीड़िया में मैंढ़क की तरह बैठ कर टर्राते रहेंगें कोई सुनने वाला नहीं। आखिर पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर किया भी कैसे जा सकता है। ये मगरमच्छ भी ना 'टू मच' होते हैं जी। छोटे छोटे मैंढ़कों को खाकर समझते हैं कि चैनल की प्रगति के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन होता उल्टा है जो मैंढ़क बरसाती होने के बावजूद हर मौसम में टर्राना सीख जाता है उसे भी हाय दे देते हैं। बेचारा हाय हाय हाय॥करते हुए अपने कुएं से बाहर निकल जाता है। दुनिया है बड़ी ज़ालिम।।। कोई सुनने वाला नही।...कौन किसका सगा यहां सबने सबको ठगा। अब बताइए हमें समझाया जा रहा है कि सबसे हाय हैलो चालू रखो और किसी की हाय मत लो। अगर दुनिया छोटी है तो मीड़िया की दुनिया जिंदगी का गोल चक्कर..।एक न एक दिन सबको दौबारा वहीं मिलना है जहां से बिछड़े थे। औऱ फिर से हाय करनी है।।।मैंने अपनी आंखों से देखा है जी। अभी किसी रंग का चश्मा नहीं चढ़ा है न।। एक दिन खूब हंगामा हुआ,,तू कौन मैं खामखा का ड्रामा भी देखा।।लोगों को एक दूसरे की हाय लेते और देते भी पाया।।गालियों की बौछारें सुनी।।।कानों से खून भी निकला।।बंदे अलग हो गये।।एक दूसरे की खूब मां-बहन करने के बाद। शूट पर दोनों को फिर से हाय कहते देखा।।। जी मचल गया।.. कितना नकली बेकार शहर है ये...कोई शख्स ठीक कह गया है जो जर्नलिज़्म करना चाहता है। वो नौकरी छोड़ने के लिए तैयार रहे।।।क्योंकि अंधों के शहर में आइने बेचना बेकार है....नहीं तो करते रहिए हाय हाय...वैसे इसका एक मतलब और भी होता है।।।



तुषार उप्रेती

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