ग़म का मौसम पल-दो-पल भर आएगा पतझड के बाद पेड़ हरा हो जाएगा आग लगी जो दो दिल में वो थोड़ी सी दर-परदा* है *भीतर एक ज़रा सी नज़र मिले और माजरा हो जाएगा...
आंखों से जो बहते हैं अश्क़ अब ये होना भी लाज़िम था, चलो इन अश्क़ों के बहने से दिल भी ख़रा हो जाएगा....
-पुनीत भारद्वाज
1 टिप्पणी:
बेनामी
ने कहा…
samajh ni aa raha iske liye kya likhu, bas ye jaan lo ki ise padh kar kuch aur padhne ka mann ni kar raha.
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samajh ni aa raha iske liye kya likhu, bas ye jaan lo ki ise padh kar kuch aur padhne ka mann ni kar raha.
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