ख्वाब जो हकीकत न हुए…...


मेरे एक ख्वाब को चेहरा मिल गया है
जब से तुम मिले हो मौसम बदल गया है
ख्वाब जो देखे थे छत पर बादलों के नीचे
अब न जाने क्यों लगने लगा की आसमान खुल गया है ।

अब पता नहीं क्या करुं मैं
ख्वाब जो देखा था वो अब पिघल गया है।

जब से तुम को देखा मौसम बदल गया है।।…..

धूप की चादर पर सर रखकर सोया था मैं
अब लगने लगा है वक्त मुझे निगल गया
मेरे एक ख्वाब को चेहरा मिल गया है।
जब से तुम मिले हो मौसम बदल गया है....

आज बरसों बाद नींद आई थी
लेकिन शायद ख्वाब था ये भी
एक लम्हा न जाने क्यों तुम्हारी गोद मे संभल गया है
मेरे एक ख्वाब को चेहरा मिल गया है।
जब से तुम मिले हो मौसम बदल गया है...

पिरोया था आज मैंने जिसे सिरहाने
दगाबाज़ निकला ये ख्वाब भी
जबसे देखा इसने तु्म्हें ये भी मुझ सा फिसल गया है
मेरे एक ख्वाब को चेहरा मिल गया है
जब से तुम मिले हो मौसम बदल गया है....



तुषार उप्रेती

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

tumhara khwaab to pata nahi par us khwaab ke baare me likhi gayi ye kavita bahut hasin hai.
nice imagination; equally nice words to describe it.
unfortunately i'm short of words.....
bcz this is just fabulous!!!!