ये शहर ....








दुप्पटों ने अब लहराना बंद कर दिया है

हवाओं ने अब गुनगुनाना बंद कर दिया है

जब से जला है ये शहर

चांद ने मुस्कराना बंद कर दिया है


साहिल पर अब भी लौटती हैं लहरें

लोगों ने अब रेत के मकान बनाना बंद कर दिया है

जब से लुटी है मुन्नी की अस्मत

मां ने कहानी सुनाना बंद कर दिया है


मुंड़ेर पर अब भी बैठती है चिड़िया

हमने उन्हें दाना खिलाना बंद कर दिया है

जब से धोखा दिया अपनों ने

यारों ने शर्त लगाना बंद कर दिया है


बच्चे अब भी बागों मे खेलते हैं

उन्होंने भी दादी को मुंह चिड़ाना बंद कर दिया है

रात अब भी वैसी ही काली है

जुगनुओं ने टिमटिमाना बंद कर दिया


न जाने कैसा खौफ़नाक मंज़र था वो

यहां रिश्ते वही हैं

लोगों ने गले लगाना बंद कर दिया है


मैं चाहता था मांगूं ख़ुदा से

कुछ पल का सुकुं पर,
उसने भी अब आस्तिकों को
विश्वास दिलाना बंद कर दिया है


जब से जला है ये शहर

चांद ने मुस्कराना बंद कर दिया है ।



तुषार उप्रेती






1 टिप्पणी:

anuradha verma ने कहा…

.......
लेखक वो होता है जो पन्नों पर शब्द नहीं बल्कि तस्वीरें ही उतार दे.......