कतरा-कतरा जिंदगी...

जिंदा लाशों के साथ जी रहा हूं मैं
अब अपने ही गम को
खुद-ब-खुद घोल कर पी रहा हूं मैं
कतरा-कतरा बिखरी हैं जिंदगी

उसके हर सिरे को सी रहा हूं मैं




तुषार उप्रेती

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