क्षितिज....


कितनी भागम-भाग है यहां,
नफ़रतों से ना जाने कितने दिल चाक (ज़ख़्मी) हैं यहां
सबको अपनी ही फ़िक्र है;
किसको किसकी क़द्र है
जब हम इंसानों की ज़िंदगी यहां कुछ ऐसे चलती है..
ऐसे में दूर कहीं क्षितिज पर ये ज़मीन
फ़ुर्सत में आसमां से गले मिलती है......

-पुनीत भारद्वाज

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