यादों के झरोखे से...


संगीत की दुनिया में किशोर दा एक ऐसे नाम हैं...जिनके बारे में कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने वक्त को आवाज़ दी। आभास कुमार गांगुली यानी किशोर कुमार के गले की दुनिया आज भी कायल है...आज यानि 13 अक्टूबर 1987 के दिन इस फनकार ने दुनिया से विदाई ली थी...


नटखट चुलबुले और बदमाश कुछ ऐसे ही थे अपने किशोर दा। जिन्होंने कभी अपनी एक्टिंग से मुंबईया फिल्म इंडस्ट्री में अपनी धाक जमाई तो कभी अपनी आवाज़ के जादू से सबको अपना दिवाना बना लिया।
सही मायनों में अगर कहें तो किशोर कुमार की आवाज़ ने हर दशक में किसी मासूम से चेहरे को राजेश खन्ना बना दियाउन्हें चिंगारियों से अपने लिये आग जलाना सिखाया। तो दूसरी तरफ नौजवानों को बताया कि प्यार दिवाना होता है,मस्ताना होता है।वहीं किसी नौजवान को उन्होनें समाज की ऊंच-नीच भरी रस्मों को न मानने के लिये मनाया। दरअसल किशोर कुमार की खासियत ही ये थी कि उनकी आवाज़ में हर मौसम को बयां करने की ताकत थी। फिर चाहे वो प्यार की खामोशी हो, या फिर हसीनों के दिवानेपन में झूमता जमाना।
आज भले ही वो हमारे बीच न हों पर उन जैसे मुकद्दर के सिकंदर की वो आवाज़ आज भी कानों में गूंजती सी है।

तुषार उप्रेती

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