ज़िंदगी इक दौड़ है...
आगे हिरण है,
पीछे शेर है,
जीने की
और जीने ना देने की
इक मुसलसल (लगातार) होड़ है
ज़िंदगी इक दौड़ है....
शेर भूखा है,
वहशी है,
दरिंदा है;
हिरण को खाना चाहता है
और वो हिरण तो बस जीना चाहता है
इक शेर है,
इक हिरण है,
इक होड़ है,
ज़िंदगी इक ख़ूंख़ार दौड़ है....
- पुनीत भारद्वाज
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