कुछ ख्वाब जो कल रात तुम्हारे
सिरहाने बैठ कर तुम्हें चूम रहे थे
आज सुबह से लापता हैं।
कोई कहता है उन्हें तुम्हारे हुस्न के
जादू ने डस लिया है।
सिरहाने बैठ कर तुम्हें चूम रहे थे
आज सुबह से लापता हैं।
कोई कहता है उन्हें तुम्हारे हुस्न के
जादू ने डस लिया है।
कोई कहता है उन्हें तुम्हारी
बाहों ने कस लिया है।
कब खोलोगी तुम ये बाहें
ताकि सासें ले सकें ये ख्वाब,
कब खोलोगी तुम ये बाहें
ताकि सासें ले सकें ये ख्वाब,
ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे बालों के
तुम्हारे जिस्म को चूमने पर
सांस लेता है सारा ज़माना,
हर किसी के दिल में
हर किसी के दिल में
तुम्हारे लिये बसा है एक अफ़साना
फिर भी हर कोई ख्वाब देखता है
तुम्हारी मुस्कुराहट का,
और
और
ख्वाब हैं जो कमबख्त
तुम्हारे इशारों पर मुस्कुरा रहे हैं।
-तुषार उप्रेती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें