दिल दोस्ती के अलावा कुछ एक्सेक्ट्रा

हुआ यूं कि घूमते घामते हम तीनों दोस्तों ने सिगरेट के सुट्टों के बाद अचानक ये प्लैन बना लिया कि दिल दोस्ती और एक्सेक्ट्रा देख ली जाए। मेरे अलावा किसी को भी फिल्म में दिलचस्पी नहीं थी। मेरी दिलचस्पी का निजी कारण था। ये फिल्म मेरे ही कॉलेज में शूट की गई है। खैर पहली नज़र में फिल्म बंडल ,बोगस और बेफिजूल जान पड़ी। लेकिन धीरे धीरे इसने हमारे इर्द-गिर्द के वातावरण की पोल खोलनी शुरु की तो अचंभा हुआ। इस फिल्म में निर्देशक से लेकर किरदार तक हर कोई एक कनफ्यूजन में जी रहा है। इमाद शाह जो फिल्म में अपूर्व का किरदार निभा रहे हैं वो फिल्म के सूत्रधार हैं। जिनकी पंचलाईन है WHEN YOU ARE YOUNG YOU BELIEVE POSSIBILITIES ARE ENDLESS. ठीक इसी तरह अपूर्व जीवन की गुत्थियों को सुलझा रहा है,परेशानी है तो बस इतनी कि उसके सामने SEX जीवन की सबसे बड़ी उलझन है। सही मायनों मे कहें तो साला ठरकी है। या फिर जहां मिले दो, वहीं गये सो। उसका ये रास्ता दिल्ली की जीबी रोड़ से लेकर एक वर्जिन स्कूली लड़की के बिस्तर तक ले जाता है। और आखिर में वो अपने दोस्त की गर्लफ्रेंड़(निकिता आनंद) के साथ भी सोता है। जिसकी भनक उसके दोस्त संजय मिश्रा (श्रेयस तलपड़े) को लग जाती है । जो कॉलेज प्रेसिडेंट बनने के चक्कर में अपनी गर्लफ्रेंड़ से कुछ दूर सा हो चुका है। फिल्म के आखिर में श्रेयस का चीखपुकार मचाना कुछ अजीब लगता है। शायद इसलिए कि फिल्म का सूत्रधार इमाद है। निर्देशक मनीश तिवारी दरअसल यहीं पर थोड़ा चूक गये हैं। फिल्म में सबसे ज्यादा जो चीज़ अखरती है तो वो है इसका बैकग्रांउड स्कोर। फिर भी निर्देशक जो प्रूव कर पाये वो ये कि ये दो अलग किस्म के हिंदुस्तानियों की कहानी है।
-तुषार उप्रेती

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