सौ का नोट..

एक दिन मैंने राह में पत्रकारों का हुजूम पाया
भईया क्या चक्कर है !
जानने की उत्तेजना ने मुझे बड़ा सताया

जब मैं भी जा मिला भीड़ में
तो काफी देर बाद मेरी समझ आया
कि एक ग़रीब, अधजला, अधमरा,
नंगा बच्चा
जिसके हाथ में सौ का नोट देखकर
खा गए थे सब गच्चा

मौजूद पत्रकारों ने तब अपनी
News-Sense लगाई
आपसी मशविरा किया
और निष्कर्ष निकालकर
बोले सुनो भाई !

सुनो भाई !
ये तो एक Investigative Report है
हो ना हो यहां तो ज़रूर कोई खोट है..

क्योंकि
एक ग़रीब बच्चे के हाथ में सौ का नोट है..
तब उन्होंने मिलकर मारा
उस निहत्थे पर
तरह-तरह के सवालों का चांटा

एक पत्रकार माइक आगे करके बोला:
क्यों बे कहां से आया है ये नोट, ज़रूर किसी की जेब को काटा

तभी भीड़ में से आवाज़ आई:
अबे कैसे खड़ा है चुपचाप,जैसे सूंघ गया हो कोई सांप...
तब एक एजेंसी के पत्रकार ने दूसरे पत्रकार से ये कहकर
कि ये तो एक सनसनीख़ेज़ ख़बर है भाई,
कलम चलाकर, मिर्च-मसाला लगाकर
उसने एक मसालेदार ख़बर बनाई
और अगले दिन वो ख़बर Value-Addition के साथ
अख़बारों में मुख पृष्ठ पर छाई
शोध व संदर्भ सहित था कि
पिछली बार कब, कहां और किस ग़रीब के हाथ में
सौ का नोट होने का मामला सामने आया
और बोल्ड अक्षरों में छपा था कि
देश के वित्त-मंत्री ने इस घटना पर क्या फ़रमाया
अपने Version में मंत्री जी ने इस मौके को ख़ूब भूनाया
और सीधे अपने वोट-बैंक पर निशाना लगाया


वो बोले :

हमारी सरकार में आम जनता को
रोटी, कपड़ा , मक़ान सहित
नोट भी मयस्सर है,
ये जीवंत उदाहरण है कि
भारत विकसित राष्ट्र बनने
को अग्रसर है

लेकिन मंत्री सहित सार पत्रकार
इस घटना से थे बेख़बर
कि सैंकड़ों झुग्गियों को कहीं
आग ने जलाया
वो गफ़लत में थे कि
इस प्रचंड आग ने
कितने परिवारों को
बेघर-बेसहारा बनाया

ये ग़रीब,
अधजला, अधमरा
नंगा बच्चा भी था उसी आग का शिकार
जिस आग ने उसके मां-बाप सहित
पूरे झोंपड़े को जलाकर
कर दिया था उसे बेज़ार

अरे बचे तो केवल दो:

एक वो बच्चा जिसमें ढूंढ रहे थे सब खोट
और उस बच्चे के हाथ में वो सौ का नोट


वो सौ का नोट....



-पुनीत भारद्वाज

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