इस बार भी रावण जल गया । लोग राम का नाम लेकर अपने अपने घर चले गये। अगले साल दशहरा फिर आएगा । भीड़ फिर इक्ट्ठा होगी। रावण के जलने का तमाशा देखेगी। फिर घर लौट जाएगी। कभी- कभी सोचता हूं ,भीड़ को हर साल एक रावण चाहिए । जिसे जलाकर कुछ पल सुकून मिलता है। फिर सब तमाशबीन अपने अपने घर लौट जाते हैं। अगले साल दर्जनों रावण फिर से पैदा कर उन्हें फिर से जलाकर , सब अपनी अपनी छाती पिटेगें। यही होता आया है। रावण हैं जो कमबख्त खत्म नहीं होते और भीड़ है जिसका हौंसला भी कम नहीं होता।
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