ले आऊं एक जोड़ी सांस... पुरानी वाली

कभी कभी बनना पड़ता है
सख्त दिल...
इतना सख्त
कि घुटने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं...
इतना सख्त…
कि सब पैबन्द, पैबस्त हो जाते हैं
अपने आप...
कभी कभी
जब अतीत के पंख लगे दिन
जंजीर बनकर गर्म गर्म
तपाते रहते हैं...
कभी कभी
कुछ समझदारियां
जिंदगी की सबसे बड़ी भूल लगने लगती हैं...
तब खूब घुटने का दिल करता है...
पर यार इस तमन्ना पर भी
बड़ा होने का अहसास
तमाचा मार जाता है...
वो नासमझियां क्यों पीछे छोड़ दी मैंने...?
क्यों हो गया हूं इतना बड़ा
कि सब छूट गया
बहुत पीछे...
कभी कभी
दिल करता है
कि झुककर उठा लूं सब जो बिखर गया है...
दिल करता है
कि चूम लू एक एक किरच
और फिर जोड़ लूं...
और ले आऊं एक जोड़ी सांस
पुरानी वाली...
पर सब रास्ते बंद कर लिये हैं मैंने...
इतने सख्त,
कि अब घुट भी नहीं पाता
सांस लेकर....

-देवेश वशिष्ठ ‘खबरी’

1 टिप्पणी:

vs ने कहा…

the poet looks very much inspired with the real life...........
but a very heart touching poem ...
keep it up
vishal.s.raghuvanshi
m.i.t.s