धरती की ओर देखते रहते हैं रात-भर..
टिमटिमाते हैं तो यूं लगता है
ज़मीं से बातचीत कर रहे हों..
उन्हें मालूम है जिस चीज़
में खो जाना है एक दिन
उससे जान-पहचान तो बनानी ही होगी..
मैंने भी तारों से ये नसीहत ले ली..
इसलिए कभी-कभी वक्त निकालकर
आसमान से दो घड़ी गुफ़्तगू कर लेता हूं
आख़िर धुंआ बनकर आसमां में ही खो जाना होगा एक दिन
नए रिश्ते बनाने से पहले जान-पहचान करना ज़रूरी है..
-पुनीत भारद्वाज
2 टिप्पणियां:
good job puneet
the poem is awesome.
aapki kavita se prerit ho kar hum bhi taaron se pehchaan banayenge.
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