जानलेवा शहर..
चांद ऐसे चल रहा है कपड़ों की तरह बादल बदल रहा हैरात ऐसे मचल रही हैमानो जुगनूओं से लड़ रही हैऔरधुंए की कालिख़ हावी है तारों की टिमटिमाहट परइसलिए केवल चांद ही नज़र आता है इस शहर की छत से इक दिन ये शहर मेरा चांद भी हड़प लेगा....-पुनीत भारद्वाज
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