ज़िंदगी......



रूख़-रास्ते-रफ़्तार बदलती है ज़िंदगी
ख़ुद अपनी ही मर्ज़ी से चलती है ज़िंदगी

मैंने लाख कोशिशें की मनाने की
मुंहज़ोर है कम्बख़्त, कहां बदलती है ज़िंदगी

राहें और मंज़िलें ग़ुफ़्तगू करते रहते हैं
उनकी ग़ुफ़्तगू की नकल करती है ज़िंदगी

अब तो ख़ुद को इसके हवाले कर चुके हैं
ख़ुद गिरती है, ख़ुद ही संभलती है ज़िंदगी


- पुनीत भारद्वाज