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इक रात भी ऐसी आई थी...




इक रात भी ऐसी आई थी,

जब चांद ज़मीं पर उतरा था
खिड़की से तुमको घूरते हुए
चांद को हमने पकड़ा था...

तब कान पकड़कर हमने उससे
उठक-बैठक कराई थी
आईंदा ऐसा नहीं करेंगे
उसने क़सम ये खाई थी
ओके बेटा कहकर हमने
चांद को चपत लगाई थी
तेरे रूप पे चांद भी फिसला
इक रात भी ऐसी आई थी...
इक रात भी ऐसी आई थी,

जब चांद ज़मीं पर उतरा था
खिड़की से तुमको घूरते हुए
चांद को हमने पकड़ा था...

तेरे रूप का दीवाना वो
थोड़ा बहका-बहका था
हौले-हौले, चुपके-चुपके
तेरी छत पे दुबक के बैठा था
इक तारा तोड़के अंबर से
तेरे बिस्तर पर फेंका था
पीछे से जाकर हमने उसको
ज़ोर से डांट पिलाई थी..
इक रात भी ऐसी आई थी,

जब चांद ज़मीं पर उतरा था
खिड़की से तुमको घूरते हुए
चांद को हमने पकड़ा था...

- पुनीत भारद्वाज

बगावत का हर रुख़ अख़्तियार है...



पांव में धूल
आंखों में ख़्वाब
दिल में लगन
सिर पर जुनून सवार है
बगावत का हर रुख़ अख़्तियार है...

अपना तो देश चलता है चमत्कारों से


अलग-अलग लोगों सेअलग-अलग विचारों से
अपना तो देश चलता है चमत्कारों से 

वादों सेदावों से और नारों से 
ऊंट करवट बदलता है जनपथ के इशारों से

जनता काजनता के लिएजनता के द्वारा
किसे मतलब है तथाकथित सरोकारों से

हर रोज़ लुटती है इक नई दामिनी
हर रोज़ टपकता है खून इन अख़बारों से

किस मज़हब की जान जली थी दंगों में 
मांगो तो ग़वाही चारदीवारों से 

हमने तो पाई थी आज़ादी सन 47 में
कहां खो गईपूछो तो ज़िम्मेवारों से 

-पुनीत बालाजी भारद्वाज



बहुत फ़ासला है, अब ये फ़ैसला लो...

तुम्हारे खुदा की हम करें आरती

हमारे खुदा की तुम आयते गाओ
बहुत फ़ासला है, अब ये फ़ैसला लो
थोड़ा हम पास आएं, थोड़ा तुम पास आओ
क्यों हैं बिखरे-बिखरे, आओ खुद को समेटें
सरहदें जो दिल में, वो सरहदें मिटाओ
माना मुश्किल भुलाना, वो बीता ज़माना
अब कुछ हम भुलाएं और कुछ तुम भुलाओ
ना अल्हा क़सम लो, ना राम की क़समें
प्रीत की अब नई क़समें तो खाओ

- पुनीत बालाजी भारद्वाज


'SAVE ME', 'SAVE MAA'


सदियों से जो बोझ सहती रही हमारा, आओ हम भी बनें इसका सहारा...

इसको मां कहते हम
जिस धरती पर रहते हम

पेड़-पौधे...जिसका श्रृंगार
आज उस पर होता अत्याचार

ना कुचलो मां के आंचल को
ना काटो घने इस जंगल को

इस दर्द का बोझ सहती है मां
'मुझे बचाओ...', कहती मां

धरती मां की लाज बचाओ
धरती मां को आज बचाओ


- पुनीत बालाजी भारद्वाज

कोई है बस तुम्हारा.....(सुनिए भी)




कोई है जो याद करता है तुम्हें
कोई है जो सांस लेता है सिर्फ़ तुम्हारे लिए

दिल हमारा भी मचलता है तुम्हारे बिना
इक-इक पल सदियों सा कटता है हमारा तुम्हारे बिना

हर इक आहट पर हम भी चौंक जाते हैं
भीड़ से बाज़ार से अब हम भी जी चुराते हैं
रत-जगे हम भी तेरी याद में मनाते हैं
तुम्हें भूल पाने की क़समें हम भी रात-दिन खाते हैं

मगर तुम्हें हम भूल पाएं तो भूल पाएं कैसे
और आरज़ू क्या है ये भी जताएं कैसे
ये दिल ही है जिसने ये दिन दिखाया है
लबों पे ख़ामोशी भीतर इक तूफ़ान सा जगाया है

भीतर इक तूफ़ान सा जगाया....




-पुनीत बालाजी भारद्वाज

अब तो सावन ऐसा आए..
















सावन की पहली बूंदों में
दिल्ली सारी धुल गई है
बस दिलों में मैल बाकी है
कम्बख़्त बारिश ये क्यों भूल गई है



















अब तो सावन ऐसा आए
जो दिलों की गर्द को धोके जाए

हर शाख़-शग़ूफ़ा यूं खिल जाए
के रोता चेहरा भी मुस्काए...




























अब तो सावन ऐसा आए
के रंज दिलों में रह न पाए

हर सूखा दरिया फिर भर जाए
और कोई न प्यासा कहलाए

अब तो सावन ऐसा आए......

मन तरसे जो बरखा बरसे ...













मन तरसे जो बरखा बरसे,
मोरे पिया अब निकलो घर से.....

















दिल तन्हा-तन्हा रूठ रहा है,
धीमे-धीमे टूट रहा है..
जाने क्या पीछे छूट रहा है,
छूना ना, बस एक झलक दे
असर आएगा तेरी नज़र से..
मोरे पिया अब निकलो घर से.......
















बूंद-बूंद पर चलके आना
या बूंद-बूंद में ढलके आना
आकर मेरी प्यास बुझाना
अब आ भी जा ओ बरखा रानी
उतर भी आओ ना अंबर से...
मोरे पिया अब निकलो घर से........
- पुनीत भारद्वाज


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Love at First Sight...















Love at first sight
Is it wrong, Is is right?
Will it be painful or delight?
love at first sight....

Whether to say yes,
Whether to say no...
Whether to follow him,
Whether to let her go...
Lots of ups...
Lots of Down..
Much to lose..
Much to find...
Will it be painful or delight?
love at first sight....

If i cry,
u will hold me na...
If i wanna fly,
u will hold me na..

Be my love, Be my part
Always close to my heart
Just Hold me tight

Love at first sight.....

- Puneet Balaji Bhardwaj

कुछ बच्चों को आपस में लड़ते देखा है....
















आंखों में ख़्वाबों को जलते देखा है...
सुबह-सुबह सूरज को ढलते देखा है...

आग लगी दरिया में ऐसे
अश्क़ बने अंगारों जैसे
सब अरमानों को राख में तरते देखा है....

चांद-सा चेहरा, रात सी ज़ुल्फ़ें
रोशन समां, रेशम सी हवा....
और....बीच सड़क पर...
रोटी की ख़ातिर,
कुछ बच्चों को आपस में लड़ते देखा है....

-पुनीत बालाजी भारद्वाज

इक लौ जलने दो....


क माटी का दीया सारी रात अंधियारे से लड़ता है...
तू तो ख़ुदा का दिया है, किस बात से डरता है*

इक लौ...
जलने दो...
पलने दो...
दर्द को....

इक लौ....
मचलने दो...
बढ़ने दो...
दर्द को.....

इक लौ...
लड़ती है...
भिड़ती है...
तूफां से अब...

इक लौ...
दहकती है...
वो कहती है...
जहां से अब...

क्यूं...
चुप रहते हो
सब सहते हो...
अब ना सहो
इस दर्द को......

क्यूं...
घर बैठे हो...
घर से निकलो...
अब तो कुचलो
इस दर्द को....


*ऊपर की दो लाइन किसी अंजान शख़्स की हैं...
- पुनीत भारद्वाज


ये दुनिया संभल भी सकती है......




हर रोज़ नज़ारा लगता है
हर शाम किनारा सजता है
कोई प्यार का मारा रोता है
कोई पेट से भूखा हंसता है

वो जेब से खाली है लेकिन
वो दिल का मालिक है लेकिन
पर इससे भी क्या होता है
हर रात वो भूखा सोता है

क्यूं नफ़रत से बर्बाद रहें
चलो प्यार से दिल आबाद करें
हर बंदिश से आज़ाद करें
इस दुनिया को शादाब* करें * हरा-भरा

ये आग भड़क भी सकती है
ये शोला भी बन सकती है
तू एक ज़रा हुंकार तो भर
कोई आंधी भी चल सकती है

कैसे हो, क्यों हो भूलो तुम
हर मुश्क़िल का हल ढूंढों तुम
जो रस्ते में थक जाएगा
तो कैसे मंज़िल पाएगा

अब तो दिल से तूफ़ान उठे
और भीतर का भगवान उठे
ये दुनिया संभल भी सकती है
जो तुझमे छिपा इंसान उठे....





- पुनीत भारद्वाज

ख़्वाहिश


ख़्वाहिशों को पंख लगाऊं
मैं यूं उड़ जाऊं
अंबर की सारी हवा बटोर के लाऊं....

छू लूं छोर गगन का
खोलूं चोर मन का
बादलों की सड़क पे ऐसे दोनों हाथ फैलाऊं
अंबर की सारी हवा बटोर के लाऊं....

एक हाथ में सूरज थामू
एक हाथ में चंदा मामू

आंखों से थामू मैं तारें
झिलमिलाएं मेरे सपने सारे
कोई तारा टूटे मैं जग जाऊं

अंबर की सारी हवा बटोर के लाऊं...

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

इक उम्मीद...
























इक उम्मीद पे टिका है सारा जहां
उम्मीद है तो फिर है अंत कहां

उम्मीद है तो नींदों में ख़्वाबों का बसेरा है
उम्मीद के साथ कुछ ढूंढने निकलो तो पूरा संसार तेरा है

ग़र उम्मीद है तो कैसी भी कोई भी हद नहीं
ग़र उम्मीद है तो आसमां से आगे भी सरहद नहीं

उम्मीद पाने से पहले, उम्मीद खोने के बाद भी
उम्मीद हर मुस्कान में, उम्मीद रोने के साथ भी

उम्मीद है तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है
वो होगा नहीं नाउम्मीद कभी जिसे ख़ुद पे यकीं है

इक उम्मीद से हर दिन नया सूरज निकलता है
उम्मीद से धरती घूमती है, रात दिन में बदलता है
और उम्मीद से ही काले-स्याह आसमान में चांद भी आगे चलता है

क्योंकि इक उम्मीद पे टिका है सारा जहां
उम्मीद है तो फिर है अंत कहां

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

आगे लगे और धुंआ उठे.....


आग लगे तो इस तरह लगे
के निग़ाहें मिले और धुंआ उठे


सांसों से सांसे छू जाए
बातों ही बातों में तूफ़ान चले

आग लगे तो इस तरह लगे.....


मेरी धड़कनें तेरी धड़कनों से टकराए
मेरी धड़कनें तेरी धड़कनें बन जाएँ
जज़्बातों का सिलसिला कुछ इस तरह चले
के निग़ाहें मिले और धुंआ उठे....


मेरी बातों में इतना असर हो
ना तुझे दिन में चैन मिले,
ना रात में बसर हो
लफ़्ज़ होंटों से गिरे और कोई जादू करे
आगे लगे तो इस तरह लगे
के निग़ाहें मिले और धुंआ उठे....


वो पल के जिसमें जन्नत नसीब होती है
रूह जिस्मों से निकलकर ख़ुदा के क़रीब होती है
आओ उस एक पल को आबाद करें


आग लगे तो इस तरह लगे
के निग़ाहें मिले और धुंआ उठे......



- पुनीत भारद्वाज




कठपुतली...




बिन धागे की कठपुतली हम
दौड़े-भागे, नाचे-गावे....
ऊपर बैठा सबदा रब राखा
डमरू बजावे, खेल दिखावे....

मजमा लगा है, मंच सजा है...
उसने क़रतब में हर रंग रचा है....
कभी उछलता, कभी फुदकता
कभी सोचता, कभी भटकता
कभी है रोता, कभी मटकता
कभी झगड़ता, कभी झिड़कता
इक आवे तो दूजा जावे...
आवे-जावे, जावे-आवे........

ऊपर बैठा सबदा रब राखा
डमरू बजावे, खेल दिखावे.....


- पुनीत भारद्वाज

Why So Serious....



Why so serious...
Lets move on...
Life is mysterious...
Forget it whats gone......

Smooth or Rough...
Hard & Tough...
Or....
If its enough is enough
Just bear a Smile
Bcoz...
Always crying is futile
Live the Life full on....

Why so serious...
Lets move on...


-Puneet Bhardwaj