हिन्दुस्तान वहां भी है, पाकिस्तान यहां भी है...





एक हिन्दुस्तान वहां भी है, इक पाकिस्तान यहां भी है...
कुछ इंसान वहां भी हैं, कुछ हैवान यहां भी हैं....

आरती-अज़ान के फेर में फंसा
बेबस भगवान वहां भी है, बेबस भगवान यहां भी है..

कुछ चेहरे हैं भोले-भोले, कुछ चेहरे जैसे बम के गोले
दहशत का सामान वहां भी है, दहशत का सामान यहां भी है...

तकसीम हुए दिल, बिछा दी सरहद
अपनी हीं ज़द में बना दी इक हद
कुछ नादान वहां भी है, कुछ नादान यहां भी है.....

बीच में बॉर्डर और दोनों ओर
एक जैसे इंसान वहां भी हैं, एक जैसे इंसान यहां भी हैं.....

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

कुछ बच्चों को आपस में लड़ते देखा है....
















आंखों में ख़्वाबों को जलते देखा है...
सुबह-सुबह सूरज को ढलते देखा है...

आग लगी दरिया में ऐसे
अश्क़ बने अंगारों जैसे
सब अरमानों को राख में तरते देखा है....

चांद-सा चेहरा, रात सी ज़ुल्फ़ें
रोशन समां, रेशम सी हवा....
और....बीच सड़क पर...
रोटी की ख़ातिर,
कुछ बच्चों को आपस में लड़ते देखा है....

-पुनीत बालाजी भारद्वाज

अब ख़ुद को ऐसा अंदाज़ तो दे....



अगर तू है कहीं, तो अपने होने का कभी कोई एहसास तो दे....
जो मैं ग़लती कर बैठूं तो मुझे कहीं से आवाज़ तो दे...

जीकर-मरना, मरकर-जीना... ये तो चलता रहता है...
बीच में आकर कभी-कभी तू जीवन को नया रिवाज़ तो दे...

शबद दिए, गीता कही, बाइबल और कुरान भी दी
कितनी इंसानी ज़ुबानों में तूने अपनी ज़ुबान भी दी
तू समझाए...सब समझ जाएं.. अब ख़ुद को ऐसा अंदाज़ तो दे....

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

इक लौ जलने दो....


क माटी का दीया सारी रात अंधियारे से लड़ता है...
तू तो ख़ुदा का दिया है, किस बात से डरता है*

इक लौ...
जलने दो...
पलने दो...
दर्द को....

इक लौ....
मचलने दो...
बढ़ने दो...
दर्द को.....

इक लौ...
लड़ती है...
भिड़ती है...
तूफां से अब...

इक लौ...
दहकती है...
वो कहती है...
जहां से अब...

क्यूं...
चुप रहते हो
सब सहते हो...
अब ना सहो
इस दर्द को......

क्यूं...
घर बैठे हो...
घर से निकलो...
अब तो कुचलो
इस दर्द को....


*ऊपर की दो लाइन किसी अंजान शख़्स की हैं...
- पुनीत भारद्वाज