दूरियां......


















माना के दूर होते हैं...
जब हम पास होते हैं..
और इन फ़ासलों में
भले ही मन उदास होते हैं..




जितने भी दूर हो हम-तुम
तो क्या हुआ ऐ दोस्त...
कुछ एहसास हैं जो
बेहद ख़ास होते हैं...



ये फ़ासलें तो बस नज़र का धोख़ा है....
हरदम तेरे ख़्याल तो मेरे आस-पास होते हैं...







- पुनीत भारद्वाज

जियांशु....


मासूम हंसी, चंचल छवि
घर-आंगन महकता गुलशन
जाने क्यूं, आखिर क्यूं
झटपट से गुज़रता है बचपन
कोई थाम ले डोर,
और रोक ले दौर
क्योंकि फिर ना आएंगे वो दिन
और फिर ना मिलेगा ये बचपन....
(मेरे भतीजे जियांशु और सभी मासूम, नन्हें-मुन्ने बच्चों के लिए )

कुछ ऐब


जीने के लिए एक ऐब पालना चाहिए
कुछ सवालों को सवालों से संभालना चाहिए

कहां-कहां ढूंढेंगे जवाबों को
कुछ वक्त अपने लिए भी निकालना चाहिए

उम्र के हर फासले पर फैसला न करो
कभी कुछ सिक्कों को यूं ही उछालना चाहिए

ऐब न हो तो हौंसला न हारें
कुछ हसीन किस्सों को फिर से खंगालना चाहिए

कभी न कभी तो बदलेगी ये सूखी फिजां
मिट्टी के घरौंदों पर एक छप्पर तो डालना चाहिए..


तुषार उप्रेती

गुस्सा

एक बारीख सी सांस ने अभी अभी
पिया है गर्म सा गुस्सा
नथूनों में एक जलन सी हो रही है
ये सांस भीतर ही भीतर
फुफकार रही है..

चीभ पर गालियों से छाले पड़े हैं
अंदर ही अंदर मैं अपने ज़हर से मर रहा हूं

धड़कनें अब पूछ कर धड़क रही हैं
दिमाग में बसी यादों से खून रिस रहा है
शरीर पर जख्मों से बना एक मिनार तैयार है


एक बारीक सी सांस ने अभी अभी
पिया है गर्म सा गुस्सा....



तुषार उप्रेती

ये फिल्म फ्लॉप क्यों नहीं हुई..जब वी मेट


कुछ दोस्तों ने कहा था कि ये फिल्म मत देखो..बकवास है..इसलिए नहीं देखी थी। लेकिन जब बाज़ार में 39रुपये में वीसीडी आई तो खुद को रोक नहीं पाया।। कब से बेचैनी थी कि आखिर जब वी मेट में ऐसा क्या है जो वो फ्लॉप नहीं हो पाई(जैसा कि सब कह रहे थे कि वो बकवास फिल्म है, शाहिद-करीना का पब्लिसिटी स्टंट है)। इम्तियाज़ अली का बतौर निर्देशक ये दूसरा प्रयास है जो उनकी कलात्मक ईमानदारी की गवाही देता है। गवाही इसलिए की कहानी में एक चोट खाया आशिक है, जो ट्रेन में गीत(करीना) से मिलता है, दोनों का मिलन ही कैसे उनकी किस्मत बदल देता है…ये हज़ारों हिंदी फिल्मों में आप देख चुके हैं। लेकिन पूरी फिल्म में दर्शक बैठ कर दोनों कैरेक्टरर्स के सफर का गवाह बना रहता है।
लोग हमेशा फिल्म खत्म होने के बाद उसके सितारों को याद रखते हैं औऱ ये भूल जाते हैं कि एक्टर हमेशा निर्देशक की कहानी का एक चेहरा होता है। फिल्म का असली बाप उसका स्क्रिप्ट राईटर औऱ डॉयरेक्टर ही होता है। बात सिर्फ इतनी होती है कि कौन सा कलाकार निर्देशक की सोच को कितनी गहराई से जीने का माद्दा रखता है...इस लिहाज से फिल्म में इम्तियाज़ अली यानी निर्देशक हावी है। शाहिद-करीना ने अपने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। शाहिद कपूर अगर लटके-झटकों की दुनिया से बाहर निकलने का साहस दिखायें तो दर्शक जल्द ही उनके भीतर एक नया सुपरस्टार देखेंगे....करीना कपूर की खासियत ये है कि वो किसी भी किरदार को अपने व्यक्तित्व
से जोड़कर उसे निभाती हैं। ये ‘चमेली’ में हम देख चुके हैं।
जहां तक संगीत की बात है उसमें ताज़गी है। जैसा कि प्रीतम से उम्मीद की जा सकती थी उन्होंने कर दिखाया है।
‘ये इश्क हाय बैठे बिठाए’ गाने में बजती पहाड़ी लोक-धुनों को आप महसूस कर सकते हैं....
अंतत; इतना ही कि अगर एक बार ये समझना चाहते हैं कि रोमांटिक फिल्म क्या होती है तो जब वी मेट जरुर देखिए। खुद देखिए और फैसला करिए कि ये फिल्म फ्लॉप क्यों नही हुई?


तुषार उप्रेती