साक़ी पिलाए जा....














साक़ी पिलाए जा बेशक़ शाम हो जाए
जो होना है आज वो अंजाम हो जाए

मयक़शी के दौर सरे-आम हो जाए
शहर के रिंदों में अपना भी नाम हो जाए

क़हक़शाओं को छू आऊं, ग़ुरबत के ग़म भूल जाऊं
जितनी भी हसरतें हैं सब तमाम हो जाए


- पुनीत भारद्वाज

फिर दीदार नहीं होता...


सत्ता पा जाने पे फिर दीदार नहीं होता
जनता के रखवालों का एतबार नहीं होता
पांच साल के बाद फिर तो आना ही होगा
गली-गली हर द्वार-द्वार पे जाना ही होगा
वोट मांगोगे हम देंगे, ये हर बार नहीं होता
जनता के रखवालों का एतबार नहीं होता....
















माना भोली जनता है पर सब जानती है पब्लिक
तख़्ते ढ़ह जाते हैं जब कुछ ठानती है पब्लिक
ना तोप से कम, ना एटम बम
वोटों से घातक और कोई हथियार नहीं होता
सत्ता पा जाने पे फिर दीदार नहीं होता.......

हाथ, कमल और हाथी सबके सब हैं पूरे खोटे
मौक़ापरस्त हैं सबके सब चाहे बड़े-मझौले-छोटे
गठबंधन से देश का बेड़ा पार नहीं होता
जनता के रखवालों का एतबार नहीं होता...
सत्ता पा जाने पे फिर दीदार नहीं होता.....
- पुनीत भारद्वाज
(कार्टून अभिषेक के हैं जो गूगल के ज़रिए लिए गए हैं)