जिंदगी का कैनवास...


तरह-तरह के रंग उकेरें,
तो रचा जिंदगी का कैनवास...

कांटें-गुलशन सभी से यारी,
कभी महुआ, कभी पलाश...

हर पल में है कितनी हलचल,
कैसे समेटूं सब एहसास...

इतने किस्से, कितनी यादें,
कुछ हैं खट्टी, कुछ हैं खास..
- पुनीत भारद्वाज

मुझे इतिहास बनाने दो...

















इतिहास ओढ़ते हो, इतिहास बोलते हो...
गढ़े-मुर्दे उखाड़ते हो, किताबों-इबारतों से
सिर्फ़ तारीख़ें खंगालते हो...


जो बीत चुका है उसे
अब बीत भी जाने दो,
मुझे आज में आने दो ...
जानिबे-मंज़िल एक क़दम तो बढ़ाने दो...


इतिहास से मत डराओ मुझे इतिहास बनाने दो....



-पुनीत भारद्वाज
(पाश से प्रेरित कविता)

आज़ादी आतंकवाद के ख़िलाफ़....

    • ये एक न्यूज़ फ़ीचर है जो मैने आज़ादी की 61वीं सालगिरह पर लाइव इंडिया चैनल के लिए बनाया...





15 अगस्त 1947..

वो ऐतिहासिक दिन..
जब हमें आज़ादी मिली।।



आज़ादी कुछ कहने की..

आज़ादी अत्याचार ना सहने की..

आज़ादी हिंदुस्तान में कहीं भी रहने की..

आज़ादी खुली हवा में सांस लेने की...



मगर अब.......



हर तरफ़ ख़ून है, लाशें हैं...बर्बादी है....


ज़रा सोचिए क्या हमें जीने की आज़ादी है....





- पुनीत भारद्वाज

बाय बाय MJ


माइकल जैक्सन का जाना......


आज सुबह कुछ धुनें कान में बजने लगीं...कुछ साज़ न चाहते हुए भी खामोश से बैठे थे...मैंने पूछा तो बोले “भाई माइकल जैक्सन ने हमेशा के लिये गुडबाय कह दिया है”.....माइकल जैक्सन का यूं जाना एक पूरी सदी के खत्म होने जैसा है....संगीत की एक पूरी सदी जो माइकल के संगीत को सुनकर बड़ी हुई और जिसने दुनिया को ब्लैक एंड वाइट का जामा पहनते-निकालते देखा वो आज सुबह सुबह ही रो पड़ी.....दिल्ली में गर्मी से लोग जल रहे थे....और मुंबई में बारिश से लोग रो रहे थे....किसी के पास ज्यादा वक्त नहीं था....किसी ने गाली दी...कहा “अच्छा हुआ साला मर गया...बच्चों को नहीं छोडा इसने”....किसी को माइकल की याद में रुलाई आ गई.....तो कोई इन सबसे परे टीवी पर मेरी तरह न्यूज के जरिये सुबह की पहली सच्चाई जान रहा था कि माइकल जैक्सन खत्म हो गया......किसी का बैड बॉय ..किसी का गुड बाय.....पर हर शख्स के पास एक राय जरुर थी, उस शख्स के बारे में जिसने आधी सदी तक संगीत को जिया....और जिसके संगीत को हम सबने अपने बचपने में...लडक्पन में पिया....ये आदमी कुछ खास था...ये चांद पर नहीं गया पर इसकी ख्याति चांद के पार तक जाती है....इसने चांद को ज़मीन पर लाकर लोगों को मून-वॉक करना सीखाया....मुझे याद है स्कूल में मेरा दोस्त हर जगह माइकल के इस अंदाज़ की नकल किया करता था और लोग उसकी इस अदा पर ताली पिटा करते थे...न जाने कितने आये और कितने निपट गये पर माइकल की थ्रिलर एल्बम का रिकार्ड फेवीकॉल की तरह वहीं ऊंचा पर जमा रहा…..आज सब के सब मायूस थे...सिर्फ वो फूल मुस्करा रहे थे जो मरने के बाद माइकल के सबसे ज्यादा नज़दीक थे...अलविदा दोस्त...


तुषार उप्रेती

हम मेहनतक़श हैं...



दौलत का शजर* हमेशा हरा नहीं होता, * पेड़

कभी क़िस्मत पर किसी का पहरा नहीं होता,

हम मेहनतक़श हैं, मिट्टी में भी सोना उगा देंगे,

मुक्क़मल मुसाफ़िरों के लिए सहरा, सहरा* नहीं होता। *रेगिस्तान

- पुनीत भारद्वाज

साक़ी पिलाए जा....














साक़ी पिलाए जा बेशक़ शाम हो जाए
जो होना है आज वो अंजाम हो जाए

मयक़शी के दौर सरे-आम हो जाए
शहर के रिंदों में अपना भी नाम हो जाए

क़हक़शाओं को छू आऊं, ग़ुरबत के ग़म भूल जाऊं
जितनी भी हसरतें हैं सब तमाम हो जाए


- पुनीत भारद्वाज

फिर दीदार नहीं होता...


सत्ता पा जाने पे फिर दीदार नहीं होता
जनता के रखवालों का एतबार नहीं होता
पांच साल के बाद फिर तो आना ही होगा
गली-गली हर द्वार-द्वार पे जाना ही होगा
वोट मांगोगे हम देंगे, ये हर बार नहीं होता
जनता के रखवालों का एतबार नहीं होता....
















माना भोली जनता है पर सब जानती है पब्लिक
तख़्ते ढ़ह जाते हैं जब कुछ ठानती है पब्लिक
ना तोप से कम, ना एटम बम
वोटों से घातक और कोई हथियार नहीं होता
सत्ता पा जाने पे फिर दीदार नहीं होता.......

हाथ, कमल और हाथी सबके सब हैं पूरे खोटे
मौक़ापरस्त हैं सबके सब चाहे बड़े-मझौले-छोटे
गठबंधन से देश का बेड़ा पार नहीं होता
जनता के रखवालों का एतबार नहीं होता...
सत्ता पा जाने पे फिर दीदार नहीं होता.....
- पुनीत भारद्वाज
(कार्टून अभिषेक के हैं जो गूगल के ज़रिए लिए गए हैं)

हौसला अभी ज़िंदा है.....



ख़ून में हरारत, जिस्म में जान बाकी है
चंद लाल क़तरों में अभी कितने तूफ़ान बाकी है...


हर हद तक करले ऐ वक़्त तू जितना भी सितम
हौसला अभी ज़िंदा है, अभी ख़ून भी है गरम


ऐ मौत ठहर थोड़ा इंतज़ार करले
अभी तो ज़िंदगी में बहुत काम बाकी है....


- पुनीत भारद्वाज

तूफ़ानों से अपनी यारी है......



ज़िंदगी तूफ़ानों में बीती सारी है
अब तो तूफ़ानों से अपनी यारी है



बारहा* डूबते-डूबते बचे हैं * बार-बार
बारहा मौजों में क़श्ती उतारी है

अब तो तूफ़ानों से अपनी यारी है...



आसमां तो फिर भी आसमां है
अब तो आसमां से भी आगे जाने की तैयारी है
अब तो तूफ़ानों से अपनी यारी है.....



जिसे चाहे अपना बना लें,
जिसे चाहे दिल से लगा लें,
इसे मेरा जुनून समझो या समझो कोई बीमारी है..

ज़िंदगी तूफ़ानों में बीती सारी है
अब तो तूफ़ानों से अपनी यारी है.............




-पुनीत भारद्वाज


कैसी ये क़शमक़श है..

ज़ेहन में न जाने कितनी सिलवटें हैं,
हर शाख़ पर बस ख़्यालों की लटे हैं,
क्या लिखूं, क्यूं लिखूं, कैसे लिखूं.......
अजीब सी क़शमक़श है,
क़ाग़ज़ कोरे का कोरा है, जाने क्यूं आज
क़लम भी बेबस है...

- पुनीत भारद्वाज

बंदूकें इतनी बिक गई हैं बाज़ारों में...























आंखें बंद करता हूं तो बेज़ुबान अंधेरा नज़र आता है...
आंखें खोलता हूं तो ख़ौफ़ का चेहरा नज़र आता है

शहर की फ़िज़ाओं में रंजिशें कुछ यूं घुल गई हैं...
अब तो महकता गुलशन भी वीरान सहरा नज़र आता है..

बंदूकें इतनी बिक गई है बाज़ारों में..
के अब तो सांसों पे भी किसी का पहरा नज़र आता है...

- पुनीत भारद्वाज


नारी शक्ति को सलाम.... वूमंस-डे प्रोमो


वो ममता की मूरत है,

तो कभी एक लाडली बेटी...

एक आदर्श बहू होने के साथ,

वो बंधी है राखी की डोर से...

कभी वो कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ती है,

तो कभी उस अबला को रहना पड़ता है दहलीज़ की मर्यादाओं में...

नारी की शक्ति पर टिका है सारा जहान

नारी के इन सब रूपों को हमारा सलाम

- पुनीत भारद्वाज

ढ़ाई आखर



















प्यार,प्रेम, इश्क़ कभी करके तो देख
ढ़ाई आखरों का फ़लसफ़ा कभी पढ़के तो देख


कबसे बस साहिल पे खड़ा है
माना आग का दरिया है, इक बार उतरके तो देख


अभी तो तुमने बस मेरी मोहब्बत देखी है

गर इंतिहा-ए-इश्क़ देखनी है तो मुझसे लड़के तो देख

- पुनीत भारद्वाज

बावरा मन.....SWANAND KIRKIRE

Song- बावरा मन...
Lyricist- स्वानंद किरकिरे
Singer- स्वानंद किरकिरे
Music- शांतुनु मोइत्रा
Film- हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी..
Director- सुधीर मिश्रा


बावरा मन देखने चला एक सपना
बावरा मन देखने चला एक सपना

बावरे से मन की देखो बावरी हैं बातें
बावरे से मन की देखो बावरी हैं बातें
बावरी सी धड़कनें हैं बावरी हैं सांसें
बावरी सी करवटों से निंदियां दूर भागे
बावरे से नैन चाहे.. बावरे झरोखों से..
बावरे नज़ारों को तकना
बावरा मन देखने चला एक सपना

बावरे से इस जहां में बावरा एक साथ हो
इस सयानी भीड़ में बस हाथों में तेरा हाथ हो
बावरी सी धुन हो कोई, बावरा एक राग हो
बावरी सी धुन हो कोई, बावरा एक राग हो
बावरे से पैर चाहें....बावरे तरानों के...
बावरे से बोल पे थिरकना....

बावरा मन देखने चला एक सपना

बावरा सा हो अंधेरा, बावरी ख़ामोशियां
बावरा सा हो अंधेरा, बावरी ख़ामोशियां
थरथराती लौ हो मद्धम, बावरी मदहोशियां
बावरा एक घूंघट चाहे...हौले-हौले बिन बताए...
बावरे से मुखड़े से सरकना..

बावरा मन देखने चला एक सपना

चड्डी पहनके फूल खिला है....गुलज़ार

Song- चड्डी पहनके फूल खिला है

Lyricist- गुलज़ार
Music- विशाल भारद्वाज
PROGRAMME- मोगली






जंगल-जंगल बात चली है, पता चला है..

अरे चड्डी पहनके फूल खिला है, फूल खिला है...



जंगल-जंगल पता चला है, चड्डी पहनके फूल खिला है..

जंगल-जंगल पता चला है, चड्डी पहनके फूल खिला है..



एक परिंदा होए शर्मिंदा..

था वो नंगा...

भइया, इससे तो अंडे के अंदर

था वो चंगा...

सोच रहा है बाहर आकर क्यूं निकला है...

अरे चड्डी पहनके फूल खिला है, फूल खिला है...


जंगल-जंगल पता चला है, चड्डी पहनके फूल खिला है..
जंगल-जंगल पता चला है, चड्डी पहनके फूल खिला है..

मार्क्सवाद और Marksवाद....



पूरे Marksवादी हो गए हैं ये मार्क्सवादी
बिला वजह विरोध करना इनकी आदत सी हो गई है
सुर्ख़ियों में रहना और हर बात पर कुछ कहना
इनकी
आदत सी हो गई है
अंकों का जोड़-तोड़ करते रहते हैं ये मार्क्सवादी
इतने दक्षिणपंथी, कितने वामपंथी!








हमारा एजुकेशन सिस्टम भी तो मार्क्सवादी हो गया है
श्रीराम
के चरित्र पर तो प्रश्नचिह्न लगा दिया जाता है
और पेपर में जय-वीरू के साथ गब्बर के चरित्र पर प्रश्न पूछे जाते हैं

चॉक से ब्लैकबोर्ड !
कॉपी से पेन तक !
Marks
वाद ऐसा फैला है कि शिक्षा व्यवस्था ना हो मटका हो
दांव पर नंबर होते हैं और नंबरों पर दांव होते हैं
शाबाश 98 %, वाह 89 %... सिर्फ़ 40 %


- पुनीत भारद्वाज

मैं तो एक ख़्वाब हूं...



मैं तो एक ख़्वाब हूं,
तुम्हारी नींद में झिलमिलाऊंगा
रात का
माहताब हूं,
दिन ढ़ला तो मैं आऊंगा.....

मैं तो एक ख़्वाब हूं,
तुम्हारी नींद में झिलमिलाऊंगा
पलकों के चिलमन से,
अंखियों के झरोखों से,

चुपके-चुपके,
धीरे- धीरे , हौले-हौले
तुमको लेकर जाऊंगा...

- पुनीत भारद्वाज

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हैप्पी बर्थडे गुलज़ार साहब....

18 अगस्त को गुलज़ार साहब पैदा हुए थे... गुलज़ार साहब के जन्मदिन पर मेरी ये पेशकश...