ऐ मेरे वतन के लोगों....


ऐ मेरे वतन के लोगों.. ज़रा जी भर जी लो जवानी..
जो शहीद हुए है उनकी.. भाड़ में जाए कुर्बानी.....

- पुनीत भारद्वाज
(A comment on today's generation including me)

दिल का धागा बांध रे...













धर्म-धागे बांधे रे बंधु
दिल का धागा बांध रे
गा ले प्रेम राग रे.....

हर सुबह तू जागे रे बंधु
अब तो सचमुच जाग रे
ख़ुद से ना तू भाग रे.....

पोथी-पत्रा बांचे रे बंधु
थोड़ा भीतर झांक रे
छत पे बोले काग रे......

काबा-कलिसा जावे रे बंधु
रब तो तोरे पास रे
करले पूरी प्यास रे.......

तेज़ सबसे भागे रे बंधु
चल तू सबके साथ रे
थामके हाथ रे

धर्म-धागे बांधे रे बंधु
दिल का धागा बांध रे
गा ले प्रेम राग रे.....

"है ख़ुदा तो है मज़हब
मज़हब से ही मंदिर-मस्जिद
मंदिर-मस्जिद में होते झगड़े
झगड़े भी तगड़े-तगड़े...

इक ख़ुदा के फेर में क्यूं खुद है रोता
ना होता ख़ुदा तो तू ख़ुदा होता....."

- पुनीत भारद्वाज
(मिर्ज़ा ग़ालिब के क़लाम से प्रेरित)

चाहतें तमाम हैं...



















चाहतें तमाम हैं, कभी सब्र तो हो...
ये कौन सा मुक़ाम है, कोई ख़बर तो हो..

यूं तो रोज़ उठते हैं ये हाथ मगर....
बस दुआ देना इनका काम है, कभी असर तो हो..

मुद्दतों रहे हैं इंसानों के बीच.....
यहां कौन इंसान है, कोई ज़िक्र तो हो..

- पुनीत भारद्वाज

हसरत की उड़ान...


















साहिल के कंधों पे लहरों ने थपकी दी है
सागर के आंचल में सूरज ने झपकी ली है.....

एक हाथ तो बढ़ाओ, आसमां पे फल लटक गए हैं
अपनी भूख मिटाओ, तारों के झुंड जो पक गए हैं
ये स्वाद में मीठे होंगे, ये बात तो पक्की ही है

साहिल के कंधों पे लहरों ने थपकी दी है....


पेड़ों के पत्तों पे, किसने ये कोहरा बिखेरा
झूमते फूलों पे, ये रंग है किसने फेरा
ये कैसा करिश्मा है, ये बात गज़ब की है

साहिल के कंधों पे लहरों ने थपकी दी है....


वो पंछी अपने घर से फिर से निकल पड़े हैं
हम भी उड़े आसमान में, क्यों सोच में पड़े हैं
ख्वाहिशों को पंख लगाएं, ये उड़ान हसरत की है

साहिल के कंधों पे लहरों ने थपकी दी है
सागर के आंचल में सूरज ने झपकी ली है....

- पुनीत भारद्वाज

इक कारवां खड़ा है...





















किस ग़म का मुलम्मा (परत) चढ़ा है,
कौन कम्बख़्त है जो पीछे पड़ा है।
चलो किसी रोज़ हवा से खेल लें,
इन कंक्रीट के जंगलों में जीना मुश्क़िल बड़ा है...

बूंदों की सोहबत में बहे,
बादलों के कंधों पे चढ़े,
कुदरत के रंगों में नहाए,
चांद के साए में जुगनूओं सा टिमटिमाएं
कदम बढ़ाओ, इक कारवां खड़ा है.....
- पुनीत भारद्वाज

मंज़िलें....


रात-रात भर ढूंढते हैं हम
एक आशियाना और एक रहगुज़र


हम तो चल दिए आंखों में लिए
ख़्वाबों का एक लंबा सफ़र


" ख़ून में हरारत जिस्म में जान बाकी है
चंद लाल क़तरों में अभी कितने तूफ़ान बाकी है
हर हद तक करले ऐ वक़्त तू जितना भी सितम
हौसला अभी ज़िंदा है, अभी ख़ून भी है ग़रम
ऐ मौत ठहर थोड़ा इंतज़ार करले

अभी तो ज़िंदगी में बहोत काम बाकी हैं......"



अकेले थे हम, अकेले चल दिए
ख़ुद ही राही और ख़ुद ही हमसफ़र


हमने थाम ली डोर प्यार की
प्यार में ही अब कटेगा हर पहर..



मानते हैं ये के है कठिन डगर
हौसलों से ऊंची पर नहीं मगर
कट ही जाएगी, मिट ही जाएगी
दूरियां ये.. तू कुछ कर गुज़र......


-पुनीत भारद्वाज