हर दिल में एक रावण ज़िंदा है...

हर साल रावण जल रहा है
और हर साल फिर से ज़िंदा हो जाता है
साल-ओ-साल चल रहे इस सिलसिले में
रावण और ख़ूंखार बनकर लौट आता है
और मर्यादा पुरूषोत्तम राम तो वहीं के वहीं रह गए हैं,
बस मंदिरों में एक मूरत बनकर,
उतने बेजान जितनी निर्जीवता एक पत्थर में होती है
आज राम का वजूद नहीं है
मगर ये सच है
कि आज हर दिल में एक रावण ज़िंदा है...

आओ दशहरा कुछ यूं मनाएं
इस बार अपने भीतर के रावण को जलाएं






-पुनीत भारद्वाज