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अगर तू है कहीं, तो अपने होने का कभी कोई एहसास तो दे....
जो मैं ग़लती कर बैठूं तो मुझे कहीं से आवाज़ तो दे...
जीकर-मरना, मरकर-जीना... ये तो चलता रहता है...
बीच में आकर कभी-कभी तू जीवन को नया रिवाज़ तो दे...
शबद दिए, गीता कही, बाइबल और कुरान भी दी
कितनी इंसानी ज़ुबानों में तूने अपनी ज़ुबान भी दी
तू समझाए...सब समझ जाएं.. अब ख़ुद को ऐसा अंदाज़ तो दे....
- पुनीत बालाजी भारद्वाज
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