सावन की पहली बूंदों में
दिल्ली सारी धुल गई है
बस दिलों में मैल बाकी है
कम्बख़्त बारिश ये क्यों भूल गई है
अब तो सावन ऐसा आए
जो दिलों की गर्द को धोके जाए
हर शाख़-शग़ूफ़ा यूं खिल जाए
के रोता चेहरा भी मुस्काए...
अब तो सावन ऐसा आए
के रंज दिलों में रह न पाए
हर सूखा दरिया फिर भर जाए
और कोई न प्यासा कहलाए
अब तो सावन ऐसा आए......
1 टिप्पणी:
My Goodness Puneet !!
How true, how honest u've been while writing this !!!
keep on the good work.
एक टिप्पणी भेजें