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कल शब ख़्वाबों को टिमटिमाते देखा
गीता-कुरान को इक-दूजे से हाथ मिलाते देखा..
मंदिर के आसन पर बैठा था इक नमाज़ी
मस्जिद के द्वारे इक पुजारी को जाते देखा...
गली से गुज़र रहा था इक मस्त-कलंदर
बच्चों की भीड़ में ख़ुद को खिलखिलाते देखा...
होटलों के बाहर भूख से लड़ते भिखारी
होटलों के अंदर जिस्मों को आज़माते देखा....
- पुनीत भारद्वाज